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सोमवार, सितंबर 24

समय का तख़्त


हवाओं ने लहराये  गुमनाम मँसूबे, 
हाथों  ने  फिर तेरा नाम सँवारा, 
भूल चुकी  इश्क़  का गलियारा, 
धड़कनों ने  फिर तेरा नाम पुकारा |


बेजान  साँसें  सुलग  उठी, 
मिला अरमानों को  सहारा, 
हाल -ए -दिल की सुनी दास्तां, 
समय के तख़्त ने फिर पुकारा |


मोहब्बत का  अंदेशा रहा हमें, 
ख़ैरियत लिख देते अल्फ़ाज़   में, 
 क्यों बंदिशें  लगा रखीं  धड़कनों पर, 
ख़ाली लिफ़ाफ़ा भेज देते याद  में |

          - अनीता सैनी 

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