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गुरुवार, मार्च 28

आँसू

                                                        
             लुढ़का   नयनों    से   यौवन, 
             बन   मधुवन    की   लाली,  
            मदिर   प्रेम   में   डूबा  मन, 
            नयन  बने  शरबत की प्याली |

            मानस   हृदय   की  वेदी  पर, 
            विराजित   करुण   स्वभाव, 
            सुख-दुःख  की सीमा बन  बैठे,  
             खोले  मन  के  कोमल  भाव |

            सजा  रही  थी  पलकों पर, 
             वह नीर गगन  में  छलका,  
           ऊषा की निर्मल किरणों-सा, 
           वह प्रेम  नयनों  में  झलका |

            बैठ  हृदय में, उलझ   रही, 
              मासूम     स्मृति   रेखा, 
             पल-पल झाँक  रही नयनों से, 
             विचलित    प्रीत  को  देखा |

            पीड़ा   नयनों   में  सूख  गयी, 
              जब उर में  पड़ा  था  सूखा,  
            घूम    रही   करुण   कटाक्ष, 
           जब  प्रेम  पराग   का  रुखा |

               -  अनीता सैनी 

30 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बहुत सुंदर भावों का मंदिर गति प्रवाह।
    अप्रतिम ।

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    उत्तर
    1. तहे दिल से आभार कुसुम दी आप का
      सस्नेह
      सादर

      हटाएं
  2. अप्रतिम सृजन सखी !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सस्नेह आभार प्रिय सखी मीना जी
      सादर

      हटाएं
  3. वाह!!सखी ,बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय सखी सुभा जी तहे दिल से आभार आप का
      सादर

      हटाएं
  4. बहुत सुंदर रचना सखी

    जवाब देंहटाएं
  5. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (29-03-2019) को दोहे "पनप रहा षडयन्त्र" (चर्चा अंक-3289) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीय चर्चा में स्थान देने के लिए
      सादर

      हटाएं
  6. मानस हृदय की वेदी पर
    विराजित करुण स्वभाव
    दु:ख सुख की सीमा बन बैठे
    खोले मन के कोमल भाव
    बहुत ही सुन्दर.... बहुत ही लाजवाब रचना वाह!!!

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    उत्तर
    1. प्रिय सखी सुधा जी तहे दिल से आभार आप का उत्साहवर्धन
      के लिए |
      सस्नेह
      सादर

      हटाएं
  7. सहृदय आभार आदरणीय
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  8. उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीय उत्साहवर्धन टिप्णी के लिए
      सादर

      हटाएं
  9. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सस्नेह आभार आदरणीया श्वेता जी हम क़दम में मुझे स्थान देने के लिए
      सादर

      हटाएं
  10. उत्तर
    1. सस्नेह आभार आदरणीया उत्साहवर्धन हेतु
      सादर

      हटाएं
  11. बहुत बढ़िया प्रेम रस की कविता।
    नयी पोस्ट : Intzaar और आचार संहिता।
    iwillrocknow.com

    जवाब देंहटाएं
  12. भावनाओं के सागर में जैसे मन गोते लगा रहा है ...
    अच्छी रचना है ...

    जवाब देंहटाएं
  13. बहुत सुंदर और भावमय गीत..

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रणाम आदरणीय
      सहृदय आभार आप का
      सादर

      हटाएं
  14. बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना...।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय सखी सुधा जी तहे दिल से आभार आपका
      सादर

      हटाएं
  15. बैठ हृदय में, उलझ रही
    मासूम स्मृति रेखा
    पल-पल झांक रही नयनों से
    विचलित प्रीत को देखा

    सुन्दर प्रस्तुति ल

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