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सोमवार, जून 10

ड्योढ़ी पर बैठी इंसानियत



दृश्य  में  दृश्य, 
ड्योढ़ी   पर   बैठी   इंसानियत, 
  मटमैले  रंगों का पहन  परिधान,
ग़ुम  हो  रहे  अस्तित्व  का  लिये दर्द,
पीपल  के  सूखे  पत्तों  सी   सूख  रही |

आँखों  से  टपकती, मनोभावों की  पीड़ा,
समय  के  हाथों  अंकुरित  
संकीर्णता का बीज, 
अंतर्मन से, 
हैवानियत  के  लिबास  में  लिपटा  इंसान, 
इंसानियत   अपनी   खो   रहा |

दरकिनार  कर  सुकून  की  चंद  साँसें,
पीट  रही  अभाव  का  ढ़िढोरा,
बन भाग्य  विधाता,
जीवन  से   लिपटी   किस्मत  का 
ज्ञाता  कहलाने   में  मग्न हो रहा |

साँसों   के   बहाव   में  बहती  पीड़ा 
पल - पल  जूझ   रही  ख़्वाहिशें, 
बनी  अंतर्वेदना, 
उपजा  हिंसक  रूप  मानव   मन  में,  
इंसानियत  का  कर  रहा  क़त्ल  सरेआम,  
तृष्णा का  पुतला  धरा  पर  पनपा,  यही  गाथा,
वक़्त,   प्रकृति  के  कण - कण  को  सुना  रहा |

- अनीता सैनी 

34 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (12-06-2019) को "इंसानियत का रंग " (चर्चा अंक- 3364) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. सहृदय आभार आदरणीय चर्चा मंच पर मेरी रचना को स्थान देने हेतु
      प्रणाम
      सादर

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  2. इतना बढ़िया लेख पोस्ट करने के लिए धन्यवाद! अच्छा काम करते रहें!। इस अद्भुत लेख के लिए धन्यवाद
    gana download kaise kare

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    1. सहृदय आभार आप का उत्साहवर्धन समीक्षा हेतु
      प्रणाम
      सादर

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  3. वाह बहुत ही सार्थक आज का अमानवीय होता मनु एक एक शब्द जैसे चित्कार कर रहा है।
    इंसानियत तो आज ड्योढ़ी पर भी नही बैठी बहन तड़ी पार हो गई है भयावह चेहरा है समय का।

    अप्रतिम अद्भुत लेखन।

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    1. सस्नेह आभार प्रिय दी जी सुन्दर समीक्षा हेतु
      प्रणाम
      सादर

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  4. बेहतरीन सृजन सखी

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    1. सस्नेह आभार प्रिय अभिलाषा दी जी
      प्रणाम
      सादर

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  5. सुंदर शब्दों में पिरोए सार्थक भाव ... अद्भुत ।
    सादर ।

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    1. सस्नेह आभार प्रिय सखी
      प्रणाम
      सादर

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  6. वाह!! सुंदर भावाभिव्यक्ति सखी अनीता जी ।

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    1. तहे दिल से आभार प्रिय सखी शुभा जी
      सादर स्नेह

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  7. बहुत सुंदर रचना सखी

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    1. तहे दिल से आभार प्रिय सखी
      सादर स्नेह

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  8. हैवानियत के लिबास में लिपटा इंसान,
    इंसानियत अपनी खो रहा |
    कड़वा सच अनीता जी

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    1. सहृदय आभार आदरणीय भास्कर भाई
      सादर

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  9. उत्तर
    1. सस्नेह आभार प्रिय दी जी
      सादर स्नेह

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  10. हैवानियत की मरम्मत करती,
    इंसानियत का पाठ पढ़ाती करती
    भावाभिव्यक्ति सुखद औ सराहनीय है।
    सुखद औ सराहनीय, अविस्मरणीय औ अभिनंदनीय है ।
    जी सादर धन्यवाद सुप्रभातम् जय श्री कृष्ण जी ।

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  11. बहुत सुंदर और मर्मस्पर्शी रचना प्रिय अनिता | बढती हैवानियत ने इंसानियत को कदम कदम पर शर्मसार किया है | इंसानियत का मलिन रूप सचमुच बहुत वेदना देता है | सस्नेह शुभकामनायें | यूँ ही लिखती रहो |

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    1. सस्नेह आभार प्रिय रेणु दी जी
      सादर स्नेह

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  12. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १७ जून २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. तहे दिल से आभार प्रिय श्वेता दी जी
      सादर स्नेह

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  13. उत्तर
    1. बहुत बहुत शुक्रिया आप का आदरणीय
      सादर

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  14. सुंदर अभिव्यक्ति 👌👌👌

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