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मंगलवार, अगस्त 20

अभिधा बन रहूँ सृष्टि के साथ



नित्य निश्छल आगमन हो प्रीत का 
हों न छल-कपट कमसिन काया  के ,
कल्लोल कपट से क्रोधे न निर्मल उर,  
न बढ़े कसैलेपन से जग में तक़रार,  
 अमूल्य मानव जीवन  मिला मुझे, 
क्यों करूँ कलुषित कुंठा का शृंगार |

सहज सरल शब्द चित्त में मेरे, 
बरबस  मुस्काऊँ  इनके  साथ, 
 टटकी टहनी बन बरगद की, 
लहराऊँ फ़ज़ा में थामूँ  हवा का  हाथ  |

 बनूँ  प्रीत  पवन  के  पैरों  की, 
इठलाऊँ इतराऊँ गगन के साथ ,
समा अकिंचन धरा के कण-कण में,
बनूँ सृष्टि की प्रीत का बहता-सा भावार्थ  |

सृष्टि-सा मुस्कुराये मन मेरा, 
मिली चाँद-सितारों की सौग़ात,
 पल्लवित हुआ प्रकृति से प्रेम गहरा, 
सौम्य स्निग्ध स्नेह की हुई रिमझिम बरसात |

मर्म मानव धर्म का धारणकर, 
आल्हादित हो धरा  का  थामूँ  हाथ,
शालीन शब्दों का करूँ मुखर बख़ान,
 अभिधा  बन रहूँ सदा-सदा सृष्टि  के साथ |

- अनीता सैनी 

22 टिप्‍पणियां:

  1. छल-कपट कोढ़ काया के ,
    कपटी मन का भार,
    जीवन मानव मिला मुझे,
    क्यों करूँ कपटी का श्रृंगार |

    शानदार रचना अनीता जी |||

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह अनीता जी सुन्दर प्रस्तुति बेहतरीन सृजन

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (21-08-2019) को "जानवर जैसा बनाती है सुरा" (चर्चा अंक- 3434) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. छल-कपट कोढ़ काया के ,
    कपटी मन का भार,
    जीवन मानव मिला मुझे,
    क्यों करूँ कपटी का श्रृंगार |
    अप्रतिम सृजन अनु...मानव जीवन का वास्तविक श्रृंगार सद्गुण ही तो हैं । बेहद खूबसूरत भावाभिव्यक्ति ।

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  5. बहुत सुंदर आध्यात्मिक चिंतन।
    मानव सदाचार और सद्भाव अभिधा रूप अपना लें तो मानवता का कल्याण हो जाए।
    अनुपम।

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    उत्तर
    1. सस्नेह आभार प्रिय दी जी
      सादर
      स्नेह

      हटाएं
  6. वाह! अभिधा का शानदार मुखरित हुआ स्वरुप। ज़िंदाबाद! प्रकृति का सानिध्य जीवन को श्रेष्ठता देने वाले

    मूल्यों को अंकुरण के लिये प्राकृतिक परिवेश रचता है जिसमें जीवन मूल्यों की स्थापना के लिये ज़रूरी

    धरातल निर्मित होता तो सृष्टि में जीवन का सफ़र नए आयाम तय करता है।

    कविता पाठक के अंतस का स्पर्श करती हुई वांछित भाव जगाने में सक्षम है। बधाई एवं शुभकामनाएँ।

    लिखते रहिए।

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  7. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 21 अगस्त 2019 को साझा की गई है........."सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद

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  8. मानव धर्म धारण कर,
    धरा का थामूँ हाथ,
    शालीन शब्दों का करूँ मुखर बख़ान,
    अभिधा बन रहूँ सृष्टि के साथ।
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, अनिता दी।

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  9. मानव मन की मौलिक अभिव्यक्ति !
    बहुत सुंदर !

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  10. बहुत ही सहज व सरल शब्दों से मानवता की बहुत बड़ी बात कह दी आपने दी !
    अप्रतिम।
    सादर
    🙏

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  11. मानव धर्म धारण कर,
    धरा का थामूँ हाथ,
    शालीन शब्दों का करूँ मुखर बख़ान,
    अभिधा बन रहूँ सृष्टि के साथ |बेहतरीन रचना सखी

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