रुसवा हो या रुख़सत
बयां कर देती हैं
बयां कर देती हैं
लफ़्ज़ ख़ामोश हो ज़ालिम
रूबरू हो जाती
आँखें आईना हैं
हाल -ए -दिल
बयां कर देती हैं
..............
राह
अँधेरों को दिखा रहे राह
मात उजाले दे गये
बाँट रहे वो मुहब्बत
मोहताज सुकूं के हो गये
बदनसीब है ये ज़माना
नसीब में सितम लिख रहा
पारस को ठुकरा
सीने से कंकड़ लगा रहा
डोर देश के भविष्य की
पतंग समझ आकाश में लहरा रहा |
- अनीता सैनी
राह
अँधेरों को दिखा रहे राह
मात उजाले दे गये
बाँट रहे वो मुहब्बत
मोहताज सुकूं के हो गये
बदनसीब है ये ज़माना
नसीब में सितम लिख रहा
पारस को ठुकरा
सीने से कंकड़ लगा रहा
डोर देश के भविष्य की
पतंग समझ आकाश में लहरा रहा |
- अनीता सैनी
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