सुकून से जीने की तलब
पल-पल बुन रहा
भुला जीने का सबब
बसर किया जीवन
तिनका-तिनका बटोर
ग़ुम हुई मुस्कुराहट
उसे सजाने में
मनुष्य का यह हाल
जीवन उसका बेहाल
रही तृष्णा ज़हन में सवार
खोजता रहा जीवन में अपनों का प्यार।
जीवन जीना गया भूल
समय यूँ ही गया धुल
आशियाना बना मन का जंजाल
यही रही काल की चाल |
- अनीता सैनी
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