समय की मार से,
अपनों के प्रहार ने,
कुछ देने की चाह,
भविष्य की मुस्कान ने,
नोच लिया आज,
कल के ताक़ पर।
अपनों के प्रहार ने,
कुछ देने की चाह,
भविष्य की मुस्कान ने,
नोच लिया आज,
कल के ताक़ पर।
आज के बाशिंदे,
कल समय के गुलाम,
खुश रखने की चाह ने,
नोच लिया बचपन ।
दिखावे की मार ने,
संस्कारों की आड़ में,
बचपन गिरवी रखा ,
अकिंचन बना दिया,
न जी सका आज ,
रही कल की प्यास |
#अनीता सैनी
संस्कारों की आड़ में,
बचपन गिरवी रखा ,
अकिंचन बना दिया,
न जी सका आज ,
रही कल की प्यास |
#अनीता सैनी
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