महानता पैर पसारती,
हर पुरुष के द्वार,
नाम लिखा जब नारी का,
बीलखति रही हर बार।
बदला नज़रिया,
दिलाशा बड़ी ,
पैरों की बेङियाँ,
आज भी वहीं ।
कल बदला न आज,
विचार में खड़ी ।
नारी की यह दशा,
समाज में बढ़ी ।
कहने को आजाद,
पिंजरे में खड़ी है,
हाँथ में रही चाबी,
ओर सोच में पड़ी ।
डाँट से न फटकार से,
शिकार किया प्यार से,
बाँध दिया दहलीज़ पर,
रिश्तों की दरकार से।
हर पुरुष के द्वार,
नाम लिखा जब नारी का,
बीलखति रही हर बार।
बदला नज़रिया,
दिलाशा बड़ी ,
पैरों की बेङियाँ,
आज भी वहीं ।
कल बदला न आज,
विचार में खड़ी ।
नारी की यह दशा,
समाज में बढ़ी ।
कहने को आजाद,
पिंजरे में खड़ी है,
हाँथ में रही चाबी,
ओर सोच में पड़ी ।
डाँट से न फटकार से,
शिकार किया प्यार से,
बाँध दिया दहलीज़ पर,
रिश्तों की दरकार से।
कोई टिप्पणी नहीं:
टिप्पणी पोस्ट करें
anitasaini.poetry@gmail.com