मोहब्बत मासूम,
दर्द ख़ंजर कहलाता ,
न तौल तेरी मासूमियत को,
हर किसी के नसीब में ऐसा दर्द नहीं होता।
माँ के आँचल की छाँव से महरुम,
माँ की हिफ़ाज़त तू करता,
न कर दिल कमज़ोर,
फ़ौलाद से टकराये ऐसा हुनर तू रखता |
घर की चौखट को मंदिर ,
माँ-बाप में भगवान को तलाशता
प्रेम ही पूजा ,
मानवता का ध्यान तू धरता |
शिकवा और शिकायत का पिटारा न खोलता,
हर बार मुस्कुराते हुए विदा करो,
यही बात तू कहता|
कुछ दर्द सीने में दफ़्न,
कुछ अश्कों में बहा देता,
माँ की हिफ़ाज़त में शीश अपना कटा देता |
दौलत न शोहरत का मोहताज़,
वतन का रखवाला कहलाता,
हर माँ के नसीब में ऐसा बेटा नहीं होता |
-अनीता सैनी
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