गुरुर धधक रहा सीने में ,
पगड़ी पहन स्वाभिमान की,
अंगारों पर चलता हूँ।
आग़ोश में मोहब्बत ,
आँचल में उम्मीद समेटे,
निश्छल नित्य आगमन करता हूँ।
ख़ुशियों का मोहताज़ नहीं ,
ग़मों से बातें करता
फ़सलों संग इठलाता हूँ।
सूरज-चाँद-सितारे,साथी मेरे ,
जीवन के राग
मोहब्बत का गान सुनता हूँ।
मेहनत करना काम मेरा,
मेहनत ही रहा ईमान मेरा
मेहनत की रोटी खाता हूँ।
आन-बान-शान,
मान जीवन के साथी
सीने से इन्हें लगाता,
किसान हूँ,
अन्नदाता कहलाता हूँ।
@अनीता सैनी
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (22-11-2020) को "अन्नदाता हूँ मेहनत की रोटी खाता हूँ" (चर्चा अंक-3893) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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बेहतरीन रचना सखी।
जवाब देंहटाएंबेहद सुंदर रचना
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