ताक रही निगाहें, सुख अंबर बरसायेगा ,
मेहनत करेगा कौन जब मुफ़्त में खाना मिल जायेगा ?
ठिठुर रही ज़िंदगी, धूप का आलम आयेगा ,
दुबक रहे घरों में, चराग़ कौन जलायेगा ?
ख़ामोशी मात दे जायेगी, हाथ मलते रह जायेंगे ,
एक बार फिर वही, ग़लती दोहराते रह जायेंगे |
वक़्त की मारा-मारी,नेताओं की होशियारी,
दिखा रहे खेल अपना, सबकी साझेदारी |
जनमानस का हाल बुरा , ज़िंदगी में कोहरा छा गया,
उम्मीद की लौ ,चुनावों का आलम छा गया |
-अनीता सैनी
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