ठिठुर रही ज़िंदगी
सड़क किनारे मानव,
मन बेहाल रहा !
ओस की बूँदें,
झुँझला रही ज़िंदगी
हवा का झौंका,
हठ के ताव लगा रहा !
सूरज निकले,
रात ढले,
इसी इंतज़ार में मन,
अलाव जला रहा !
ठिठुरन जानी-पहचानी,
वक़्त की रही बेमानी,
सुलग रही आग पेट की,
क़िस्मत से हार न मानी,
सड़क किनारे ज़िदगियों का,
यही हाल रहा !
#अनीता सैनी
सड़क किनारे मानव,
मन बेहाल रहा !
ओस की बूँदें,
झुँझला रही ज़िंदगी
हवा का झौंका,
हठ के ताव लगा रहा !
सूरज निकले,
रात ढले,
इसी इंतज़ार में मन,
अलाव जला रहा !
ठिठुरन जानी-पहचानी,
वक़्त की रही बेमानी,
सुलग रही आग पेट की,
क़िस्मत से हार न मानी,
सड़क किनारे ज़िदगियों का,
यही हाल रहा !
#अनीता सैनी
सुंदर रचना, चिन्तन पूर्ण। शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंसह्रदय आभार आदरणीय
हटाएंसादर