एक टक शून्य की ओर ताकती निगाहें
साँझ-सी ढल रही ज़िंदगी,
उत्सुकता से पूछ रही यही सवाल,
कल फिर सूर्य उदय होगा,
इस पथ का राही,
किसी अनजानी राहों पर होगा ?
कभी अपने आपको,
कभी वक़्त को ताक रही,
ज़हन में उठ रहा सवाल ,
अंतरमन में मच रहा बवाल ,
वक़्त का किया मैंने क्या हाल ?
ज़िंदगी के अंतिम पड़ाव पर स्वयं से कर रही यही सवाल।
लड़खड़ाते क़दम, सँभलने का करता जतन,
दिशाहीन जा रहा,
मन में मायूसी ,निगाहों में लाखों सवाल,
ख़ामोशी के लिबास में अनायास ,
मुझसे रुठकर जा रहा,
अपनाया न कभी मैंने ,
आज ठुकराकर मुझे जा रहा,
ख़ामोशियों में आवाज़ दिये जा रहा,
कुछ न कहा !
चंद शब्द गुनगुनाता जा रहा।
" वक़्त का वक़्त से रहा ये तक़ाज़ा
थामे रखा जिसने वक़्त का दामन
वक़्त रहते वक़्त पर बना वही राजा
आने वाला वक़्त फिर इतिहास दोहरायेगा
वर्तमान को भविष्य का आईना दिखायेगा "
#अनीता सैनी
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जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन ।
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