सर्द हवाएँ सिमटी
पथ पर दीप जला रही
उत्साह , उमंग , पुष्प उम्मीद के
प्रण गुलदस्ते गूँथ रही।
रिक्त हुए जीवन के संग
कर्म टोकरी टटोल रही
उम्मीद दीप नयन में जला
प्रण गुलदस्ते गूँथ रही।
नव प्रभात का पुष्प खिला
हृदय में मुस्कान फैला रहा
समय में सिमटी तृष्णा
प्रण गुलदस्ते गूँथ रही।
जनमानस की थामे अँगुली
नव वर्ष राह दिखा रही
फाल्गुन के अंतिम पहर में
प्रण गुलदस्ते गूँथ रही।
#अनीता सैनी
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (30-12-2020) को "बीत रहा है साल पुराना, कल की बातें छोड़ो" (चर्चा अंक-3931) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसर्द हवाएँ सिमटी
जवाब देंहटाएंपथ पर दीप जला रही
उत्साह , उमंग , पुष्प उम्मीद के
प्रण गुलदस्ते गूँथ रही।
बहुत सुंदर श्रेष्ठ रचना ...
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं 🌹🙏🌹