वक़्त बे-वक़्त,वक़्त ने किया वक़्त पर वार,
ज़ख़्म गहरें,ख़ामोशी से वक़्त ने किया प्रहार |
ख़ंजर कर्मों का,वक़्त का रहा प्रहार ,
बे-ख़बर मन मेरा न कर सका तक़रार |
वक़्त का प्रहार महफ़िल में हुस्न-ए-यार,
वक़्त-ए-बेताबी-ए-ख़ामोशी में सिसक रहा प्यार |
जज़्ब-ए-ग़म का मशविरा सुन रहे, हुस्न-ए-प्यार ,
ख़ामोश हुस्न,इंतज़ार में प्यार,वक़्त की रही मार |
अपनी नजरों का वार,फेंक बढ़ जाता उस पार ,
मैं वक़्त की शो-केस में खड़ी,देख रही वक़्त का प्रहार |
- अनीता सैनी
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