धूसर रंगों में रंगा उम्मीद का रंग
आकाश में मंडराते काले बादलों संग
ना-उम्मीदी में ढलने लगा
आँखों में तैरता निराशा का सन्नाटा
तारों की छाँव में बार-बार मिलने आने लगा
अनायास ही क़दम डग भरने लगे
धूप और अंधेरे की गहराइयों को नापते
ख़ुशियों से कोसों दूर जाने लगे
कुछ बुद्धिजीवियों ने बुद्धि के छल-बल
से फाँस लिया चंद्र-भानु को
वो भी अब आग बरसाने लगा
सोख धरा का नीर
मेहनत का उपहास उड़ाने में मशग़ूल हो गया
बुद्धि की जीत मेहनत अब पाँव से रौंदे जाने लगी
आकाश में मंडराते काले बादलों संग
ना-उम्मीदी में ढलने लगा
आँखों में तैरता निराशा का सन्नाटा
तारों की छाँव में बार-बार मिलने आने लगा
अनायास ही क़दम डग भरने लगे
धूप और अंधेरे की गहराइयों को नापते
ख़ुशियों से कोसों दूर जाने लगे
कुछ बुद्धिजीवियों ने बुद्धि के छल-बल
से फाँस लिया चंद्र-भानु को
वो भी अब आग बरसाने लगा
सोख धरा का नीर
मेहनत का उपहास उड़ाने में मशग़ूल हो गया
बुद्धि की जीत मेहनत अब पाँव से रौंदे जाने लगी
आगबबूला हुआ मन
तन से बहते पसीने को फिर
न बहने की दुहाई देने लगे
ज़िंदगी को जीने की ललक
आँखों के बहते पानी में कुछ शब्द
अनायास ही बहने लगे |
दोहे
------
तन से बहते पसीने को फिर
न बहने की दुहाई देने लगे
ज़िंदगी को जीने की ललक
आँखों के बहते पानी में कुछ शब्द
अनायास ही बहने लगे |
दोहे
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भाव समर्पण से सजे, मुखड़े पर मुस्कान ।
चौखट पर जब जुल्म हो, न्याय करे हलकान ।।
मोहक फूल खिला-खिला, बुना शूल का जाल ।
रसना पर मृदु शब्द हो, सरगम में हो ताल।।
हाव-भाव का ताना बुने, आभूषण को धार।
मैंं के मद में डूबकर, मत रख मन पर भार ।।
मानव मन को तौलती, धरा स्वर्ण की खान।
हरा-भरा आँचल करो, लहर-लहर हो धान।।
संस्कार मेंं सज रहा, अब तो खरपतवार।
बढ़ता है विश्वास में, आज धरा पर प्यार।
जग जननी धरती बनी, जीवन का आधार।
घर में आग लगी हुई, बढ़ता हाहाकार ।।
जब प्रहार सूरज करे, जले द्वेष का राज ।
प्यारी मोहक महक से सजे नेह के साज।
- अनीता सैनी
बहुत ही लाजवाब रचना
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय
हटाएंसादर
वाहहहहहहहहह
जवाब देंहटाएंवाह कहने है अति सुन्दर रचना
जी बहुत बहुत शुक्रिया आप का
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (24-05-2019) को "आम होती बदजुबानी मुल्क में" (चर्चा अंक- 3345) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सहृदय आभार आदरणीय चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए
हटाएंसादर
वाह बहुत सुन्दर अनुपम अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंकाव्य सौष्ठव से भरपूर अप्रतिम अद्भुत।
प्रिय सखी आप का बहुत बहुत शुक्रिया
हटाएंसादर
अद्भुत। निस्संदेह लाज़वाब रचना मैम।
जवाब देंहटाएंजी बहुत बहुत शुक्रिया आप का
हटाएंसादर
गहन विवेचना प्रस्तुत करती अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार आदरणीय आप का
हटाएंसादर
बहुत सुंदर दोहों से सजी रचना।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय आप
हटाएंसादर
वाह अद्भुत रचना सखी 👌👌🌹
जवाब देंहटाएंप्रिय सखी अनुराधा जी तहे दिल से आभार आप का
हटाएंसस्नेह
सादर