हृदय का उद्वेग
हृदय का उद्वेग,
भावों के उच्च शिखर की,
सीमा को लाँघकर,
त्रासदी बनता हुआ,
गंतव्य की ओर बढ़ता है,
अंतरमन के शब्दों को,
भावनात्मक वेग प्रदानकर,
ध्वनियों से अवतरित अंतरनाद की मधुर लालिमा में समाहित,
प्रपंचों से दूर,
अधोमुखी स्वरुप में सिमटा हुआ,
प्रतिपल भावों के वेग को,
तीव्र करता हुआ ,
अंतरात्मा की आवाज़ को इंसानियत के ओर नज़दीककर,
शब्दों को मुखर रूप प्रदानकर,
अपना अस्तित्व तराशने की,
चित में प्रेरणा का प्रवाहकर
वाणी को मधुरता प्रदानकर,
सृष्टि ने सुशोभित किया,
अंतरात्मा की आवाज़ को |
जबकि मानव लूट रहा,
लुभावने प्रपंचों से,
क्षीणता के कगार पर बैठ,
खंडित कर रहा,
अंतरध्वनि, हृदयपटल पर,
सच कहने और सहने की,
क्षमता से दूर,
गढ़ रहा ढकोसले का मलिन आवरण |
- अनीता सैनी
सामयिक चिंतन में निराशा का भाव उभर आया है. सामाजिक परिवेश में आजकल मूल्य तीव्र गति से बदल रहे हैं.
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय
हटाएंसादर
जबकि मानव लूट रहा,
जवाब देंहटाएंलुभावने प्रपंचों से,
क्षीणता के कगार पर बैठ,
खंडित कर रहा,
अंतरध्वनि, हृदयपटल पर,
सच कहने और सहने की,
क्षमता से दूर,
गढ़ रहा ढकोसले का मलिन आवरण |सुंदर और सटीक प्रस्तुति सखी
सस्नेह आभार सखी
हटाएंसादर
वाह वाह वाह वाह बहूत ही सुन्दर और सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय
हटाएंसादर
वाह!!प्रिय सखी ,बहुत खूब कहा आपने !👌
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार सखी
हटाएंसादर
वाहहहहहहह अति सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार सखी
हटाएंसादर
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 04 जुलाई 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय पाँच लिंकों का आंनद पर स्थान देने हेतु
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सादर
जबकि मानव लूट रहा,
जवाब देंहटाएंलुभावने प्रपंचों से,
क्षीणता के कगार पर बैठ,
खंडित कर रहा,
अंतरध्वनि, हृदयपटल पर,
सच कहने और सहने की,
क्षमता से दूर,
गढ़ रहा ढकोसले का मलिन आवरण...
बहुत ही सुन्दर लेखन। मानवीय परिवेश में छुपी विकृति का सटीक आकलन। बधाई ।
सहृदय आभार आदरणीय उत्साहवर्धन हेतु
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सादर
अंतरमन का अनहद नाद...विचारणीय रचना अनु।
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार प्रिय सखी
हटाएंसादर
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (05-07-2019) को ", काहे का अभिसार" (चर्चा अंक- 3387) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सहृदय आभार आदरणीय चर्चा मंच पर स्थान देने हेतु
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सादर
सम सामयिक क्षोभ और मायूसी भरा चिंतन प्रिय अनीता। पर सार्थकता की शुरुआत के लिए आपसी सौहार्द की भावनाओं का भीतर रहना बहुत जरूरी है। हमें खुद इसका सूत्रधार बनना होगा। सार्थक प्रस्तुति के लिए हार्दिक शुभकामनाएं। 💐💐💐💐💐🌹💐
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार प्रिय रेणु दी जी
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सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय सखी
हटाएंसादर
बेहतरीन रचना अनीता जी
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय दी जी,आप का स्नेह यूँ ही बना रहे
हटाएंसादर
सच कहने और सहने की,
जवाब देंहटाएंक्षमता से दूर,
गढ़ रहा ढकोसले का मलिन आवरण
बहुत ही सुन्दर लेखन...अनीता जी
सहृदय आभार आदरणीय उत्साहवर्धन हेतु
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सादर
यही सच बनता जा रहा है आज का ।
जवाब देंहटाएंरचना में क्षोभ और तंज दोनो ऊभर कल आये है ।
सच मानवीय मूल्यों का स्वरूप बिगड़ता जा रहा है ।
बहुत सुंदर रचना ।
तहे दिल से आभार प्रिय कुसुम दी जी
हटाएंसादर स्नेह
लाज़बाब रचना अनिता
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार प्रिय उर्मिला दी जी
हटाएंसादर स्नेह
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, अनिता दी।
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार प्रिय ज्योति बहन ,आप का स्नेह यूँ ही बना रहे
हटाएंसादर स्नेह
बहुत ही सुन्दर सार्थक और विचारणीय भावाभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंवाह!!!
तहे दिल से आभार प्रिय सुधा दी जी ,आप का सानिध्य यूँ ही बना रहे
हटाएंसादर स्नेह