बुधवार, दिसंबर 18

अवतरित हुआ है धरा पर


                                                
 बदलते परिवेश में द्वेष के झुरमुट से, 
अवतरित हुआ है धरा पर द्वेष के लिवास में 
 एक सुडोल और कमनीय काय प्राणी,
 कामनाओं की कोख में नहीं कुलबुलाया,
पनपा है भविष्य की लालसामय अंधगुफाओं से,
पथभ्रष्ट,आत्महारा,आत्मकेन्द्रित,
हृदय है जिसका विगलित |

स्वर्णिम आभा-सा दमकता दुस्साहस, 
लोकतंत्र में भंजक-काष्ठवत-सा लिये स्वरुप,  
जिजीविषा की उत्कंठा से अपदस्थ, 
कालचक्र  पर प्रभुत्त्व की करता वह पुकार,  
दमित इच्छाओं को पोषितकर, 
वर्चस्व को समेटने में अहर्निश है वह मग्न,    
वक़्त की धुँध में धँसाता कर्म का धुँधला अतीत,  
स्वयं को कर परिष्कृत |


तीक्ष्ण बुद्धि के साथ लिये है,
 तंज़ के तेज़ का एक सुनहरा हथियार,
राम-रहीम-सा लिये है मुखौटा मुख पर, 
रावण-तैमूर का चिरकाल से,
बन बैठा  है मुँहबोला बेटा,
जिसकी स्थितियाँ,मनोवृत्तियाँ,
आत्मा हुई हैं  विकृत |


अराजक तिमिर के साथ,
आत्मसात की है जिसने, 
आत्मसुख की भावना प्रबल,
अग्निवर्णी परोपकार का भाव, 
दिल में नहीं धड़कता स्वार्थ के साथ,
 झलकता है कभी-कभी,
हर साँस में उड़ती धूल 
बनाती है ग़ुबार बेपरवाही का 
लिये अतृप्त तृष्णा कभी न होने के लिये निवृत्त |


 © अनीता सैनी

30 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (19-12-2019) को      "इक चाय मिल जाए"   चर्चा - 3554    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय चर्चामंच पर मेरी प्रस्तुति को स्थान देने के लिये.
      सादर

      हटाएं
  2. विषम परिस्थितियों पर गहन चिन्तन में डूबे मनोभावों की पृष्ठभूमि पर सशक्त लेखन....
    आत्मसुख की भावना प्रबल,
    अग्निवर्णी परोपकार का भाव,
    दिल में नहीं धड़कता स्वार्थ के साथ,
    झलकता है कभी-कभी,
    हर साँस में उड़ती धूल बनाती है,
    ग़ुबार बेपरवाही का लिये अतृप्त तृष्णा,
    कभी न होने के लिये निवृत्त |
    मानव स्वभाव ही ऐसा है..., उसकी इच्छाओं की की कोई सीमा नहीं । एक के बाद एक बलवती रहती हैं और अतृप्ति का भाव कभी संतुष्टि से जुड़ ही नही पाता ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीया मीना दी जी रचना का मर्म स्पष्ट करती सुन्दर और सारगर्भित समीक्षा हेतु.
      सादर

      हटाएं
  3. किरदार गढ़े जाते हैं शिशु मन से निश्छलता से भरे जीवन मूल्यों की श्रेष्ठता स्थापित करने के लिये वहीं अधोमुखी मूल्यों की व्याख्या के लिये भी किरदार तलाशे जाते हैं। यथार्थपरक चिंतन परिवेश की सच्चाइयों का बे-लाग बखान करता हुआ दिशा तय करता है।

    रचना में गंभीर चिंतन उभरा है जो प्रवाह की सरलता में कहीं-कहीं अखरता है। आकर्षक शब्दावली रचना को सामान्य से उत्कृष्टता की ओर ले जाती है।

    बधाई एवं शुभकामनाएँ।

    लिखते रहिए।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय रचना का विश्लेषण करती सुन्दर और सारगर्भित समीक्षा हेतु. आपका आशीर्वाद हमेशा बना रहे.
      सादर

      हटाएं
  4. अनीता, देश का नेतृत्व आज ऐसे ही महानुभावों के हाथ में है और आम भारतीय का भाग्य भी इन्हीं के हाथों में गिरवी है.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय सर मार्गदर्शन हेतु.
      सादर प्रणाम

      हटाएं
  5. अवतरित हुवा है धरा पर👇

    ये इस देश का दुर्भाग्य है कि प्रजातंत्र के नाम पर यहां अराजक तंत्र फैला हुआ है,
    यहां कण-कण में शोणितबीज है
    जो नष्ट नहीं होते बस दस गुणा, सौ गुणा, हजार गुणा बढ़ते जाते हैं ।
    बहुत चिंतन परक रचना है
    शब्द विन्यास भी समृद्ध है ,
    आज ऐसी रचनाओं की जरूरत है और आप कुछ लोग बखूबी लिख भी रहे हो । साधुवाद तो है ही और एक सुझाव है ,
    ऐसे सार्थक चिंतन परक विषयों पर जब भी लेखनी चलाओ ये रचनाएं जन-जन तक पहुंचे।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर नमन आदरणीया कुसुम दीदी जी सुन्दर एवं सारगर्भित समीक्षा हेतु. रचना का मर्म स्पष्ट सार्थक समीक्षा.
      अपना स्नेह और सानिध्य हमेशा बनाये रखे.
      सादर

      हटाएं

  6. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २० दिसंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीया श्वेता दी पांच लिंकों के आनंद पर मेरी रचना को स्थान देने हेतु.
      सादर

      हटाएं
  7. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 20 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. तहे दिल से आभार आदरणीया दीदी जी मेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में स्थान देने हेतु.
      सादर

      हटाएं
  8. वक़्त की धुँध में धँसाता कर्म का धुँधला अतीत,
    स्वयं को कर परिष्कृत | ____ अनीता जी पूर्व की भांत‍ि इस रचना का भी कोई सानी नहीं ... बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीया दीदी जी सुन्दर समीक्षा हेतु.
      सादर प्रणाम

      हटाएं
  9. स्वयं से वार्तालाप करती रचना ...
    पर क्या सच है ये भविष्य के गर्भ में ही छुपा है ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय सर सुन्दर समीक्षा हेतु.
      सादर

      हटाएं
  10. वाह बेहतरीन रचना।रचनात्मक चिंतन ।सराहनीय
    सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीया दी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
      सादर

      हटाएं
  11. बहुत ही सुंदर रचना । जितनी भी सराहना करें कम होगी। शुभकामनाएं स्वीकार करें ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय सुन्दर समीक्षा हेतु.
      सादर प्रणाम

      हटाएं
  12. उत्तर
    1. तहे दिल से आभार आदरणीया पम्मी दी जी.
      सादर स्नेह

      हटाएं
  13. अद्भुत लेखन.. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया दी
      सादर

      हटाएं