बुधवार, फ़रवरी 24

ऋतु वसंत


 वासंती परिधान पहनकर

क्षिति दुल्हन-सी शरमाई है 

शीश मुकुट मंजुल सुमनों का 

मृदुल हास ले मुसकाई है ।।


पोर-पोर शृंगार सुशोभित

ज्यों सुरबाला कोई आई है

मुग्ध घटाएँ बहकीं-बहकीं 

घट भर सुषमा छलकाई है।।


शाख़-शाख़ बजती शहनाई 

सौरभ  गंध उतर आई  है

मंद मलय मगन लहराए

पात झाँझरी झनकाई है ।।


कली कुसुम की बाँध कलंगी

रंग कसूमल भर लाई है 

वन-उपवन सजीं बल्लरियाँ

ऋतु वसंत ज्यों बौराई है। ।


@अनीता सैनी 'दीप्ति'

42 टिप्‍पणियां:

  1. मन प्रसन्न हो जाता है ऐसी मनमोहक रचना पढ़कर..सादर नमन

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  2. बेहद खूबसूरत सृजन सखी

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    1. आभारी हूँ आदरणीय अनुराधा जी।
      सादर

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  3. बहुत रोचक कविता...
    साधुवाद 🙏

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  4. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2050...क्योंकि वह अपनी प्रजा को खा जाता है... ) पर गुरुवार 25 फ़रवरी 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. आभारी हूँ आदरणीय रविंद्र जी सर पाँच लिंकों पर स्थान देने हेतु।
      सादर

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  5. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 26-02-2021) को
    "कली कुसुम की बांध कलंगी रंग कसुमल भर लाई है" (चर्चा अंक- 3989)
    पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद.


    "मीना भारद्वाज"

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    1. आभारी हूँ आदरणीय मीना जी चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
      सादर

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  6. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति । वासंती प्रकृति के सौन्दर्य से सुशोभित ।

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    1. आभारी हूँ आदरणीय जितेंद्र जी।
      सादर

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  7. सुन्दर प्रस्तुति.

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    1. सादर आभार आदरणीय ओंकार जी सर।
      सादर

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    1. आभारी हूँ आदरणीय यशवंत जी सर।
      सादर

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  9. बहुत सुन्दर।
    सार्थक शब्दों से बसन्त का बढ़िया चित्रण किया है आपने।

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    1. सादर आभार आदरणीय शास्त्री जी सर।
      सादर

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  10. वाह! प्रकृति का सुंदर मानवीयकरण , सुंदर अलंकारों को धारण किए बंसत की सुगंध लिए सरस अभिव्यक्ति।
    सस्नेह।

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    1. दिल से आभार आदरणीय कुसुम दी जी।
      सादर

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  11. शाख़-शाख़ बजती शहनाई

    सौरभ गंध उतर आई है

    मंद मलय मगन लहराए

    पात झाँझरी झनकाई है ।।

    वाह !! बसंत को बेहद खूबसूरती से दर्शाया है तुमने,स्नेह

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  12. वाह!प्रिय अनीता ,खूबसूरत सृजन ।

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  13. बसन्त आगमन का सुंदर शब्द चित्रण ।

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    1. आभारी हूँ आदरणीय संगीता दी जी।
      सादर

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  14. बहुत सुंदर। कुछ पंक्तियाँ तो बस मंत्रमुग्ध कर गईं जैसे -
    पात झाँझरी झनकाई है ।।
    और
    कली कुसुम की बाँध कलंगी
    रंग कसूमल भर लाई है

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    1. दिल से आभार आदरणीय मीना दी जी।
      सादर

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  15. वासंती महक से भरी सुंदर रचना

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  16. बहुत सुंदर मोहक कृति

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    1. आभारी हूँ आदरणीय दिलबाग़ जी सर।
      सादर

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  18. वाह क्या कहने, खूबसूरत के साथ साथ प्यारी भी, बहुत सुंदर कविता अनिता जी बधाई हो आपको

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    1. दिल से आभार आदरणीय ज्योति जी।
      सादर

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  19. बसन्त का बढ़िया चित्रण

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  20. पोर-पोर शृंगार सुशोभित

    ज्यों सुरबाला कोई आई है

    मुग्ध घटाएँ बहकीं-बहकीं

    घट भर सुषमा छलकाई है।।

    बसंत ऋतु की छटा बिखेरता लाजवाब गीत
    वाह!!!!

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    1. सादर आभार आदरणीय सुधा दी मनोबल बढ़ाने हेतु।
      सादर

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