प्रीत री लौ जलाये बैठी,
धड़कन चौखट लाँघ गयी,
धड़क रहो हिवड़ो बैरी,
हृदय बेचैनी डोल रही |
रुठ रही है ख़ुशीयाँ पीवजी,
गौरी हँसना भूल गयी,
अब पधारो पिया प्रदेश,
गौरी थारी बोल रही |
अब के फ़ागुन लौट आवो तुम,
झील-सी अँखियाँ रीत गयी,
ओढ़े बैठी प्रीत री चुनड़,
हाथों में मेहँदी घोल रही |
बह गया काजल आँखों का,
दर्द में अंखियां डूब गयी
सिसक रहे घर-द्वार पीवजी
साँसें धीरज तोल रही |
- अनीता सैनी
बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय लोकेश जी
हटाएंसादर नमन
अति सुन्दर पति वियोग में नारी वेदना का हार्दिक वर्णन
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय नारायण की
हटाएंसादर नमन
बहुत सुंदर प्रस्तुति सखी
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार सखी
हटाएंसादर नमन
वाह! बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय विश्वमोहन जी
हटाएंसादर नमन
आज सलिल वर्मा जी ले कर आयें हैं ब्लॉग बुलेटिन की २३५० वीं बुलेटिन ... तो पढ़ना न भूलें ...
जवाब देंहटाएंतेरा, तेरह, अंधविश्वास और ब्लॉग-बुलेटिन " , में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
सहृदय आभार आदरणीय ब्लॉग-बुलेटिन में मुझे स्थान देने के लिए
हटाएंसादर नमन
वाह बहुत सुन्दर सखी मारवाड़ी शब्दों का बहुत सुंदर प्रयोग
जवाब देंहटाएंकविता के भाव मुखरित करते ।
सोणी है चोखी है।
सस्नेह आभार सखी
हटाएंथान घणों घणों राम राम 🙏🙏
सुन्दर।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय सुशील जी
हटाएंसादर नमन
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय
हटाएंसादर नमन
अंतस को छूती बहुत सुंदर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंसहृदय आभर आदरणीय
हटाएंसादर नमन
राजस्थान की माटी की भीगी सी महक लिए मनमोहक कृति ! अप्रतिम रचना सखी !
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार सखी
हटाएंसादर नमन
बह गया काजल आँखों का
जवाब देंहटाएंदर्द में अंखियां डूब गई
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क्या बात है क्या बात है। हर पंक्ति लाजवाब। सादर।
सहृदय आभार आदरणीय
हटाएंसादर नमन
वाह !!! बहुत खूब सखी ,विरहन के दर्द को बाखूबी शब्दों में पिरोया है.....
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार कामिनी जी
हटाएंसादर
बहुत सुन्दर अनीता जी ! बिरहिन की पीड़ा, उसकी आतुर-प्रतीक्षा और पिया-संग होली खेलने की उसकी उत्कट अभिलाषा का सजीव और सुन्दर चित्रण किया है आपने. भाषा में आंचलिकता का पुट इस कविता को और भी सुन्दर बना देता है.
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय उत्साहवर्धन टिप्णी के लिए
हटाएंसादर नमन
Very Anita
हटाएंबहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार सखी
हटाएंसादर नमन
हर पंक्तियां लाजवाब..
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार आदरणीया पम्मी जी
जवाब देंहटाएंसादर नमन
अब के फ़ागुन लौट आवों तुम
जवाब देंहटाएंझील सी अंखियां रीत गई
ओढ़े बैठी प्रीत री चुनड़
हाथों में मेहंदी घोल रही .....
जी बहुत सुंदर ।
जी आप ने पढ़ी रचना लिखना सार्थक हुआ
हटाएंबहुत सा स्नेह आप को
आभार
सादर
अब के फ़ागुन लौट आवों तुम
जवाब देंहटाएंझील सी अंखियां रीत गई
ओढ़े बैठी प्रीत री चुनड़
हाथों में मेहंदी घोल रही
बहुत ही मर्मस्पर्शी सृजन प्रिय अनीता | प्रियतम की प्रतीक्षा में रत मन की चातक सरीखी पुकार और मनुहार मन को छू जाती है | पर --
निष्ठुर प्रियतम ना जाने सखी
इस हिय की विरहा पीर
पल-पल छलके नैन गागरी
ना कोई आन बंधावे धीर
दिन बीते ये रैन कटे ना
कंठ रुंधे बोल ना आवे
फागुन आया ना आये साजन
मोहे साज सिंगार ना भावे
फूल खिले ये मन मुरझाया
कोयल कूके दे जियरा चीर
सुध बुध रही ना अपने तन की
फिरूं खोई विकल अधीर
सस्नेह बधाई इस भावपूर्ण सृजन के लिए
सस्नेह आभार सखी
हटाएंहोली की हार्दिक शुभकामनायें बहन
बहुत ही सुन्दर टिप्णी के साथ उत्साहवर्धन बहन
सादर