गूँगी गुड़िया

अनीता सैनी

रविवार, अक्टूबर 12

शैवाल से शिला तक

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शैवाल से शिला तक ✍️ अनीता सैनी — वह समय — जो कभी नहीं लौटता, जिसका अब जीवन में कोई औचित्य नहीं, वही सबसे अधिक बुलावा भेजता है; क...
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गुरुवार, अक्टूबर 9

मौन का शास्त्र

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मौन का शास्त्र ✍️ अनीता सैनी स्त्री— आँचल में सूरज की तपिश छिपा लेती है, ओस की बूँदों से चाँद को पोंछ देती है। पग-पग पर शांति के पदच...
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गुरुवार, अक्टूबर 2

सूखा कुआँ

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सूखा कुआँ ✍️ अनीता सैनी ….. जीवन के सारे जतन धरे के धरे रह जाते हैं, जब कोई उस कुएँ की जगत पर बैठता है जहाँ अब पानी नहीं खिंचता—...
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शुक्रवार, सितंबर 26

चेतना का मानचित्र

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चेतना का मानचित्र ✍️ अनीता सैनी ….. इस मार्ग पर चेतना का कोई मानचित्र नहीं है। जहाँ पहुँचकर उसे सूखने से बचाया जा सके— वे पगडंडि...
शनिवार, सितंबर 20

प्रतीक्षा में खड़ी हूँ

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प्रतीक्षा में खड़ी हूँ ✍️ अनीता सैनी ….. अब और लड़ाई लड़ने का मन नहीं करता, फिर भी मैं तेरे लिए यह राह बुहार रही हूँ— ताकि त...
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रविवार, सितंबर 14

नमी की आवाज़

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नमी की आवाज़ ✍️ अनीता सैनी दुपहर अब भी दूरियों को खुरचती है, बादलों ने करवट नहीं बदली— फिर भी बरसात उतर आती है। वे पगडंडियाँ जंग...
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सोमवार, सितंबर 8

अस्तित्व का बहना

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अस्तित्व का बहना नदी और जीवन का आत्मसंवाद ✍️ अनीता सैनी वह बहती थी— शांत, धैर्य से भरी, जैसे नियति ने पहले ही उसके प्रवाह में अप...
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गुरुवार, सितंबर 4

अधूरेपन का आकाश

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अधूरेपन का आकाश ✍️ अनीता सैनी वे दोनों  अपनी आख़िरी साँसों पर थे, टहनियों पर टहलते हुए याद कर रहे थे— कितनी बार हवा ने उन्हें झु...
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शुक्रवार, अगस्त 29

धुँधलों से हरापन

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धुँधलों से हरापन ✍️ अनीता सैनी …….. अफ़सोस— उसने खाना छोड़ दिया, भूख अब मर चुकी है। उसने न सत्य निगला, न अपनी कठोर आलोचना। हाँ, ...
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अनीता सैनी
मैं एक ब्लॉगर हूँ, स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हूँ, प्रकृति के निकट स्वयं को पाकर रचनाएँ लिखती हूँ, कविता भाव जगाएँ तो सार्थक है, अन्यथा कविता अपना मर्म तलाशती है |
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