गूँगी गुड़िया
अनीता सैनी
रविवार, मार्च 19
पहाड़
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कुछ लोग उसे पहाड़ कहते थे, कुछ पत्थरों का ढ़ेर सभी का अपना-अपना मंतव्य अपने ही विचारों से गढ़ा सेतु था आघात नहीं पहुँचता शब्दों से...
रविवार, फ़रवरी 26
औरतें
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तुम ठीक ही कहते हो! ये औरतें भी ना…बड़ी भुलक्कड़ होती हैं बड़ी जल्दी ही सब भूल जाती हैं भूल जाती हैं! चुराई उम्र की शिकायत दर्ज कर...
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सोमवार, फ़रवरी 6
चरवाहा
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वहाँ! उस छोर से फिसला था मैं, पेड़ के पीछे की पहाड़ी की ओर इशारा किया उसने और एक-टक घूरता रहा पेड़ या पहाड़ी ? असमंजस में था मै...
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शनिवार, जनवरी 28
बोधि वृक्ष
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नर्क की दीवार खंडहर एकदम खंडहर हो चुकी है हवा के हल्के स्पर्श से भी वहाँ की मिट्टी आज भी काँप जाती है कोई चरवाह नहीं गुजरता उधर से और न ही ...
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बुधवार, जनवरी 18
मैं और मेरी माँ
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माँ के पास शब्दों का टोटा हमेशा से ही रहा है वह कर्म को मानती है कहती है- ”कर्मों से व्यक्ति की पहचान होती है शब्दों का क्या कोई भी दोहरा ...
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शनिवार, जनवरी 7
कोहरे की चादर में लिपटी सांसें
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कोहरे की चादर में लिपटी सांसें उठने का हक नहीं है इन्हें ! जकड़न सहती ज़िंदगी से जूझती ज़िंदा हैं टूटने से डरतीं वही कहती हैं जो सदियाँ कहती ...
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सोमवार, दिसंबर 26
'एहसास के गुँचे' एवं 'टोह' का लोकार्पण
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शब्दरंग साहित्य एवं कला संस्थान बीकानेर में रविवार को महाराजा नरेंद्र सिंह ऑडिटोरियम में काव्य संग्रह 'एहसास के गुँचे' और...
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शनिवार, दिसंबर 17
बटुआ
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एहसास भर से स्मृतियाँ बोल पड़ती हैं कहतीं हैं- तुम सँभालकर रखना इसे अकाल के उन दिनों में भी खनक थी इसमें! चारों ओर सूखा ही सूखा पसरा पड़ा था ...
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बुधवार, नवंबर 30
उसका जीवन
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उसका जीवन देखा? यह जीवन भी कोई जीवन है व्यर्थ है… एक दम व्यर्थ! उसे मर जाना चाहिए हाँ! मर ही जाना चाहिए आख़िर बोझ है धरती का हाँ!बोझ ही तो ह...
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