गूँगी गुड़िया

अनीता सैनी

मंगलवार, दिसंबर 9

प्रतीक्षा एक तीर्थ

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प्रतीक्षा एक तीर्थ  ✍️ अनीता सैनी …… कोई भी साया बस यूँ ही देवद्वार तक नहीं जाता भटकन उसे भी खारी लगने लगती है। मन की मरुस्थली द...
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गुरुवार, दिसंबर 4

भीतर की थिरकन

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भीतर की थिरकन  ✍️ अनीता सैनी …. कभी-कभी हवा के हल्के झोंके से भाव मन की भीतरी डोर कस लेते हैं और भीतर के समंदर में एक सूक्ष्म कं...
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मंगलवार, नवंबर 25

रेत पर बिखरे उत्तर

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रेत पर बिखरे  उत्तर ✍️ अनीता सैनी ….. कभी धूप में झिलमिलाते उस सुनसान विस्तार से दृष्टि मत मोड़ना— उसका वही एक चकत्ता, जहाँ पृथ्...
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रविवार, नवंबर 16

नदी का छिपा हुआ दीप

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नदी का छिपा हुआ दीप (मौन की गहराई में जन्म लेता उजास) ✍️ अनीता सैनी .... मेरी हर सुबह मेरे पुरखों की हड्डियों में सोया उजास लेकर...
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रविवार, नवंबर 2

रेत भी प्रेम में उतरती है

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रेत भी प्रेम में उतरती है ✍️ अनीता सैनी ……… रेत — बहुत धीरे-धीरे बहती है, जैसे मरुस्थल ने पानी की स्मृति को कंठ में रोक लिया हो।...
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बुधवार, अक्टूबर 22

जड़ में जीवन है

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जड़ में जीवन है (विरह के पार — आत्मा का शोर) ✍️ अनीता सैनी --- तुम मन की माया के सारे खेल खेलना, जब भी मन करे — तुम प्रेम के दरि...
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रविवार, अक्टूबर 12

शैवाल से शिला तक

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शैवाल से शिला तक ✍️ अनीता सैनी — वह समय — जो कभी नहीं लौटता, जिसका अब जीवन में कोई औचित्य नहीं, वही सबसे अधिक बुलावा भेजता है; क...
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गुरुवार, अक्टूबर 9

मौन का शास्त्र

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मौन का शास्त्र ✍️ अनीता सैनी स्त्री— आँचल में सूरज की तपिश छिपा लेती है, ओस की बूँदों से चाँद को पोंछ देती है। पग-पग पर शांति के पदच...
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गुरुवार, अक्टूबर 2

सूखा कुआँ

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सूखा कुआँ ✍️ अनीता सैनी ….. जीवन के सारे जतन धरे के धरे रह जाते हैं, जब कोई उस कुएँ की जगत पर बैठता है जहाँ अब पानी नहीं खिंचता—...
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अनीता सैनी
मैं एक ब्लॉगर हूँ, स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हूँ, प्रकृति के निकट स्वयं को पाकर रचनाएँ लिखती हूँ, कविता भाव जगाएँ तो सार्थक है, अन्यथा कविता अपना मर्म तलाशती है |
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