गुरुवार, जून 19

मीरा — एक अंतरध्वनि


मीरा — एक अंतरध्वनि
कविता / अनीता सैनी
 १७ जून २०२५
....

अंतः स्वर 
 ध्वनि और दृश्य का
 एक गहरा द्वंद्व है।

धरती के गर्भ से
 फूटा था जो
 उष्ण लावा —
 अब शीतल राख बन चुका है।

बिखरे भावों में उलझा
 एक चोटिल जीवन —
 जो जीना तक
 भूल चुका है।

हाथों में
 एकतारा — या तानपुरा,
 वाणी में
 झरता है
 निस्संग प्रेम…

यह तुम्हारे
 दृश्यों का द्वंद्व है —
 जहाँ
 ध्वनि को तुम “भजन” कहते हो,
 और
 दृश्य को — “मीराँ”।

4 टिप्‍पणियां:

  1. सच्चे प्रेम में सारे द्वंद्व खो निर्द्वन्द्व एक हो जाते है । बहुत सुंदर रचना ... !

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में शनिवार 21 जून 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह!प्रिय अनीता ,बहुत खूबसूरत सृजन!

    जवाब देंहटाएं
  4. अंतर्मन के द्वंद्व को बाहर निकालना आसान नहीं,,,बहुत सही,,,

    जवाब देंहटाएं