गूँगी गुड़िया
अनीता सैनी
रविवार, जनवरी 19
अधूरे सत्य की पूर्णता

सोमवार, जनवरी 13
बालिका वधू

रविवार, जनवरी 5
बुकमार्क
बुकमार्क / अनीता सैनी
३जनवरी २०२५
……
पुस्तक —
प्रभावहीन शीर्षक,
आवरण, तटों को लाँघती नदी,
फटा जिल्द,
शब्दों में
उभर-उभरकर आता ऋतुओं का पीलापन,
कुछ पन्नों के बाद
पाठक द्वारा लगाया बुकमार्क
उसे रसहीन बताता रहा।
पुस्तक के अनछुए पन्ने,
व्यवस्थित रहने का सलीका ही नहीं,
मौन में मधुर स्मृतियों को पीना सिखाते रहे।
उसे बार-बार हिदायत देते रहे—
न पढ़ पाने की पीड़ा में
न अधिक चिल्लाकर रोना है,
और न ही
ठहाका लगाकर हँसना है।
चेतावनी—
सिले होठों से भाव अधिक मुखर होते हैं।
इतने शालीन ढंग से टिके रहना,
कि समय
पन्नों से हवा के ही नहीं,
आँधियों के भी आँसू पोंछ सके।
पुस्तक—
कोने में
स्वयं को पढ़ती है, पढ़ती है
तटों को तोड़ती एक-एक धारा को।
उसे न पढ़ पाने की पीड़ा नहीं कचोटती,
कचोटता है—
बिना पढ़े लगाया बुकमार्क।

सोमवार, दिसंबर 30
पथ की पुकार

शनिवार, दिसंबर 21
अवश स्वप्न
अवश स्वप्न / अनीता सैनी
२१ दिसम्बर २०२४
…..
वेदना दलदल है जो
अमिट भूख लिए पैदा होती है।
बहुत पहले यह
कृत्रिम रूप से गढ़ी जाती है,
फिर यह
स्वतः फैलने लगती है।
अंबर-सा विस्तार
चाँद न तारे
बस सूरज-सा ताप
चेतना ऐसी की पाताल को छू ले।
एकांकीपन इसका आवरण,
धीरे-धीरे और बढ़ा देता है।
फैलाव इतना बढ़ जाता है कि
वहाँ तक किसी का हाथ नहीं पहुँचता।
न ही रस्सियाँ डाली जा सकती हैं,
और न ही लट्ठे।
और एक दिन,
अतीत
वर्तमान से भूख मिटाने लगता है
और वह पौधा, उसी में समा जाता है।

रविवार, दिसंबर 15
टूटे सपनों का सिपाही

मंगलवार, नवंबर 26
छांव में छिपे रंग

रविवार, नवंबर 17
हिज्र के साए

गुरुवार, नवंबर 14
अवसान के निशान
