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मंगलवार, अक्टूबर 26

माँ को भी माँ चाहिए


बेटियों के हृदय पर

किसने खड़ी की होंगीं ?

गगनचुंबी

कठोर विचारों की ये दीवारें

जरुर जिम्मेदारियों ने

लिबास बदल 

मुखौटा लगाया है

लोक-लाज में डूबा 

 भ्रम कहता है

स्वतः ही जीवन भँवर में

बेटियाँ बेड़ियों में उलझी हैं!

नहीं! नहीं!

कदाचित कोई निर्दयी

ठगी, हठी चित्त ही रहा होगा

बाँधे हैं जिसने अदृश्य

बेड़ियों से बेटियों के पाँव

बेड़ियों के जंजाल से 

मुक्त करते हैं स्वयं को 

थोड़ा-सा प्रेम,समर्पण

स्वच्छचंद धरा पर बहाते हैं 

कठोर विचारों की नींव का

पुनर्निर्माण करते हुए 

प्रेम के प्रतिदान से

जिम्मेदारियों के नवीन एहसास से

आसमान के कलेज़े को

चीरते हुए निकली ये अदृश्य

मीनारें गिराते हैं

 माँ  को बेटी बना

 कलेजे से लगाते हैं।


@अनीता सैनी 'दीप्ति'

मंगलवार, अक्टूबर 19

उसके तोहफे

 उसके द्वारा दिए गए 

उपहार 

अनोखे होते हैं 

 जुदा, सबसे अलग 

कुकून में लिपटी

 तितली की तरह।


या कहूँ नंगे पाँव दौड़ती

 दुपहरी की  तरह

या फिर झुंड में बैठी

उदास शाम की तरह

बड़े अनोखे होते हैं

उसके द्वारा दिए उपहार।


कभी-कभार उसका

भूले से

अलगनी पर भूल जाना

भीड़ में भटके

अकेलेपन को 

दीन-दुनिया से बे-ख़बर

एकांत को 

सीली-सी रात में अंकुरित

एहसास को 

बड़े अनोखे होते हैं

उसके द्वारा दिए उपहार।


उन भीगे-से पलो में

सौंप देना ऊँची उड़ान

खुला आसमान

तारों को छूने की ललक

देखते ही देखते 

अंत में

मौली से बाँध देना मन को

अनोखे होते हैं उसके तोहफ़े 

अलग,सबसे अलग।


@अनीता सैनी 'दीप्ति'

शुक्रवार, अक्टूबर 8

आळा रो दिवलो


आळा माही धधके दिवलो 

पछुआ छेड़ मन का तार।

प्रीत लपट्या जळे पतंगा 

निरख विधना रा संसार।।


रुठ्यो बैठो भाव समर्पण 

नयन कोर लड़ावे  लाड़।

खुड बातां का काढ़ जीवड़ो

टेड़ी-मेडी बाँध बाड़।

 विरह प्रेम री पाट्टी पढ़तो 

चुग-चुग आँसू गुँथे हार।।


 बूझे हिय रो मोल बेलड़ी

 यादा ढोव बिखरा पात।

जीवन क्यारी माँज मुरारी

 रम्या साँझ सुनहरी रात।

अंबर तारा बरकी कोंपल

 चाँद हथेल्या रो शृंगार।।


धवल चाँदनी सुरमो सारा 

 जागी हिय की पीर रही।

 थाल सजाया मनुवारा में 

आव भगत की खीर रही। 

हलवो पूरी खांड खोपरो

 झाबा भर-भर दे उपहार।।


@अनीता सैनी 'दीप्ति'


शब्द =अर्थ 

आला -ताख,आळा,ताक़

दिवलो -दीपक 

लपट्या -लौ 

बेलड़ी-बेल 

हथेल्या -हथेली 

झाबा-बाँस या पतली टहनियों का बना हुआ गोल और गहरा पात्र, टोकरी


शनिवार, अक्टूबर 2

ट्रेंड



बारिश की बूँदों का 

फूल-पत्तों की अंजुरी में 

 सिमटकर बैठना

बाट जोहती टहनियों का 

हवा के हल्के झोंके के

स्पर्श मात्र से ही 

निश्छल भाव से बिखरना

डाल पर डोलती पवन का 

समर्पण भाव में डूबना

बिन बादल बरसी बरसात का

यह रुप

कभी  ट्विटर पर

 ट्रेंड ही नहीं करता।


@अनीता सैनी 'दीप्ति'