Powered By Blogger

रविवार, फ़रवरी 27

सौभाग्य


जब कभी न चाहते हुए भी

सौभाग्य वर्दी में मुझसे मिलता है

तब उसका दृष्टिकोण

प्रेम नहीं त्याग ढूँढता है 

अंतरयुद्ध को ठहराव 

समुंदर से विस्तृत विचार 

पाषाण-सा कठोर हृदय 

 कोरी किताब लाता है 

तब एक पिता पति नहीं

बल्कि वह एक बेटा होता है

उसकी आँखों में माँ की सेवा 

वह कृत्तिव्यनिष्ट होता है

कल्पना की सौम्यता से दूर

जमीनी सचाई का रंग भरता 

यथार्थ के फूलों का उपहार 

शब्द में आकुलता बिखेरता

वह एक झोंका-सा होता है 

 मैं स्वयं को जब 

उसकी आँखों में ढूँढ़ती हूँ

वह मुझे अपनी सांसों के 

उठते बवंडर से ढक लेता है 

आँखों की पुतलियों को फेर

पानी की हल्की परत में

 डूबो देता है 

तब वह एक पत्नी प्रेमिका नहीं

बल्कि एक सिपाही ढूंढ़ता है। 


@अनीता सैनी 'दीप्ति' 

रविवार, फ़रवरी 20

कैसे लिखूँ?


प्रेम लिखूँ! हठ बौराया है 

कैसे?शब्दों का टोकना लिखूँ 

उपमा उत्प्रेक्षा का रूठना 

कैसे स्मृतियों में ढूंढ़ना लिखूँ ?


 कैसे लिखूँ?

मनोभावों के झोंके को

ठहरे जल में उठती हिलोरों को 

कैसे कुहासे-सी चेतना लिखूँ?


अकेलेपन के अबोले शब्द 

अधीर चित्त की छटपटाहट

उफनती भावों की नदी को 

कैसे अल्पविराम पर ठहरना लिखूँ?


इक्के-दुक्के तारों की चमक 

गोद अवचेतन की चेतना 

अकुलाहट मौन हृदय की

कैसे रात्रि का संवरना लिखूँ?


निरुत्तर हुई व्याकुलता

अन्तर्भावना वैराग्य-सी 

प्रेमी प्रेम का प्रतिरूप

कैसे मौन स्पंदन में डूबना लिखूँ?


@अनीता सैनी 'दीप्ति'

बुधवार, फ़रवरी 16

साथी



ढलती साँझ विदाई की बेला

अकुलाए भावों का उफनना।

आँखों से ओझल धुँधराए 

ख्याल से घट का छलकना।


पाखी! धड़कनों का कलरव

उपहार में हृदय बिछाया है।

पैरों को हौले-हौले रखना

फूलों में प्रीत को छिपाया है।


उमगते-निमगते चाँद-सूरज

चाँदनी आँचल फैलाएगी।

टेडी-मेढी पगडंडियों पर

प्रीत जुगनुओं-सी जगमगाएगी।


अविराम शून्य में डूबती लहर 

 या हो बीते पलों का एहसास।

 गीत ग़म के न गुनगुना साथी 

 खुशियों का पहनना लिबास।


तुम चले हो नए पथ की ओर

मिले छाँव हँसती भोर साथी।

हृदय हमारा सुनता रहेगा अब

स्मृतियों की उठती हिलोर साथी।


@अनीता सैनी 'दीप्ति'

सोमवार, फ़रवरी 14

आखरी कागद


पुलवामा शहीदों की शहादत की तीसरी बरसी पर सादर श्रद्धांजलि!

 

गाँव पुकारे साथी म्हाने

हिवड़े आग ळगावे है।।

धुँधळी-धुँधळी गळियाँ दीसे

सुण! चौपाळ बुळावे है।।


आख्यां बाळू किणकी रड़के 

बाटा जोवे ब्यायेड़ी।

जेठ भीगियो चौमासे सो

छपरा टाटी टूटेड़ी।

काळजड़ा हिळकोरा उठ्ये 

गोड्या नींद सुळावे है।। 


ओल्यू ऊँटा टोळा सरीखी

धरती मनड़ तापड़ पड़े।

खुड़के रेवड़ टाळी बणके

गडरियो शब्दा सुर जड़े।

ढळतो सूरज मनड़ो मोस्ये 

आकुळ मन भरमावे है।।


तारा जड्यो आँचळ ओढ्या 

झोंका लेख लारे खड़ा।

बाँह पकड़ झुळाबै बैरी

काची कोंपळ ठूँठ जड़ा।

छोड़ घरौंदा पाखी उडिया

माँ, लाडो बिळखावे  है।।


@अनीता सैनी 'दीप्ति' 


शब्दार्थ 

ळगावे-लगाना 

धुँधळी-धुँधळी=धुँधली-धुँधली 

गळियाँ-गलियाँ  

बुळावे-बुलाना 

बाळू किणकी-रेत के कण 

ब्यायेड़ी-ब्याहता स्त्री 

काळजड़ा-हृदय ,कलेजा 

हिळकोरा-लहर 

गोड्या-गोदी 

सुळावे-सुलाना 

टोळा -समूह या टोला 

सरीखी-जैसे 

तापड़-पैरों की ध्वनि

ढळतो-ढलना 

लेख -विधना के लेख या लेखा 

लारे -पीछे 

बिळखावे-बिलखना 

बुधवार, फ़रवरी 9

बसंती बेला



मरू धरा रे आँगण माही

सज बसंती संसार है।।

मोर-पपीहा झूमे-गावे 

बरस रह्या मद्यसार है।।


भाव पखेरू मुग्ध मगण हो 

डाळ-डाळी पर झूळतो।

कोपळ सतरंगा री फुट्ये

कसूमळ बदळा घूळतो।

कण-कण राग आलाप सोवे 

बदळी ढके आसार है।।


भूंगळ भेरी मशका तुरही

होंठा बाँसुरी ताण है।

हिवड़े हिलोर अळगोजा री 

पूँगी साध री शाण है।

दशुं दिशायाँ भर हिळकोरा 

जळ तरंगी अपसार है।।


उपवण धोरा लाग्य सोवणा

डाळ्य-डागळ कोंपल फूट।

खेत-खळिहान कुआँ-बावड़ी

 लिपट्य बेल-बूटा टूट।

दोणों हाथ लुटावे कुदरत

मंगळ  घड़ी अभिसार है।।


@अनीता सैनी 'दीप्ति'


शब्दार्थ 

आँगण -आँगन।

मद्यसार- शब्द मुग्ध होने के भाव से है।

मगण-मगन।

हिलोर-ऊँची लहर।  

डाळ-डाळ-डाल डाल।

कोपळ-कोंपल।

फुट्ये-नव अंकुर आना।

डूबयों-डूबना।

बादळ-बादल।

भूंगळ, भेरी,मशका,तुरही,अळगोजा-

यह राजस्थान के प्रशिद्ध वाद्य यंत्र हैं।

हिळकोरे-तरंग।

मंगळ-मंगल।

लिपटी,लिपटना-आलिंगन करना।

गुरुवार, फ़रवरी 3

विरक्ता भाव



प्रीत नगरिया हेलो मारे 

हिया उफण अतियोग रह्या।

भाव विरक्ता सोवे-जागे 

किण पहरा संजोग रह्या।।


शांत पात री छाया ओढ्या 

शीतळ झोंक रो उद्गार।

दूबड़ धरती हिवड़ा सजनी 

काळजड़ रो है सिणगार।

मन री आख्या मुंडो देख्यो 

ल्यूँ बलाएँ सुयोग रह्या।।


खड़ी खेजड़ी खेता माही 

सांगर-सी अभिलाष झड़े।

 बाळू  हांण्ड्य है बोराई 

धोरा रो सिणगार जड़े।

निरमोही री भगती ठाडी 

 जाग्या पूरणयोग रह्या।।


 झरबेरी रा बेरू बिणयां 

 भाव गठरिया याद रही।

खाट्टा-मीठा थाने अर्पण

 झाबा री अळबाद रही।

कंठ मौन मोत्याँ री माळा

विधणा रा ऐ योग रह्या।।


@अनीता सैनी 'दीप्ति'

शब्दार्थ 

हेलो-तेज़ स्वर में आवाज़ देना

उफण -उफनना 

अतियोग-अतिशयता

विरक्ता-अनुरागहीनता

किण-किस 

ओढ्या-ओढ़ना 

हांण्ड्य-घूमना 

काळजड़-हृदय 

सिणगार-सिंगार 

मुंडो-मुँह 

देख्यो-देखा 

बेरू-बेर 

बिणयां-बिनना 

थाने-तुम्हें 

माळा-माला 

अळबाद-ठिठोली करना