Powered By Blogger

मंगलवार, नवंबर 30

सरस्वती वंदना



माँ शारदा शरण में थारी
भाव-भक्ति माळा लाई।
फूल-पता बिछाया आँगणा 
मूर्त मन आळा बिठाई।।

कूँची माय स्याह भावों की 
 कोरो कागज काळजड़ो
आशीर्वचन दे माँ मालिनी
धीरज जोड्याँ हाथ खड़ो
वीणावादनी हँसवाहिनी
ज्ञान घृत दीवट जलाई।।

संगीत-कला री दात्री माँ
श्रद्धा सुमन अर्पित करूँ
घोर साधना डगे न हिवड़ो
जीवण थान समर्पित करूँ
महाभद्रा महामाया माँ
मोळी सूत सज कलाई।।

चित्त च्यानणो भरूँ चाँदनी
 नवो गीत नवगीत लिखूँ 
 थांरो सुंदर मुखड़ों माता
 दिवा निशा हरदम निरखूँ
महाविद्या मात मातेश्वरी
पद पंकज हिये समाई।।

@अनीता सैनी 'दीप्ति'

शब्द =अर्थ 

थारी =तुम्हारी
माळा =माला, हार
आँगणा =आँगन
आळा =आला, ताक
काळजड़ो=हृदय
दीवट= लकड़ी का वह पुराने ढंग का स्तंभ जिस पर दीया रखा जाता है
घृत = धी
मोळी =मोली
नवो =नया
दिवा-निशा =दिन-रात

शनिवार, नवंबर 27

तर्कशील औरतें

वक़्त-बेवक़्त
समय को बारंबार 
स्मरण करवाना पड़ता है 
कि तर्कशील औरतों ने
भटकाव को पहलू में
बिठाना छोड़ दिया है। 

लीक पर चलना
सूरज के इशारे पर
छाँव की तलाश में 
पेड़ की परिक्रमा करना 
सामाजिक वर्जनाओं को
धारण करना भी छोड़ दिया है। 

रहस्य में डूबी
संस्कार रुपी रंगीन पट्टियों का 
 आँखों पर आवरण नहीं करती 
अंधी गलियों में
लकड़ी के सहारे विचरती रूढ़ियों ने 
तर्कशील औरतों को 
बातों में उलझना भी छोड़ दिया  हैं।

उपेक्षाओं के परकोटे को तोड़ 
रिक्तता की अनुभूति उन्हें 
ऊर्जावान
और अधिक ऊर्जावान बनाती है।

@अनीता सैनी 'दीप्ति'

रविवार, नवंबर 21

म्हारी लाडेसर



 गुड़ डळी बँटवाई घर-घर 
खुल्यो सुखा रो बारणों।
लाड कँवर लाडेसर म्हारी 
चाँद-सूरज रो चानणों।।

प्राजक्ता-सी हृदय-मोहिनी 
तुलसी पाना बन छाई
आँगण माही बिखरी सौरभ 
माँडनियाँ-सी मन भाई
हिवड़े माही गीत गूँजती 
किरण्या झरतो झालणों।।

कुमकुम पाँव रचाती आई
शुचि दीप्ता-सी मनस मोहणी
हिय की कोर बिठावे बाबुल 
तारक दला-सी सोहणी
नव डोळ्या बिछ पलक पाँवड़े 
 लूण राई को वारणों ।।

उगते सूरज पळे आस-सी
ढलते दिन री लालिमा
मन पोळ्या रो दिवलो म्हारो
उजळी भोर हर कालिमा
जग सारे रो सुख वैभव दूँ 
झोटा देवती पालणों।।

@अनीता सैनी 'दीप्ति'

शब्द =अर्थ 

बारणों =दरवाजा

लाड़ कँवर= राजकुमारी 

 लाडेसर = पुत्री, बेटी 

चानणों =उजाला

प्राजक्ता =पारिजात

माँडनियाँ =मांडना राजस्थान की लोक कला है। इसे विशेष अवसरों पर महिलाएँ ज़मीन अथवा दीवार पर बनाती हैं

झालणों =हवा देने की पँखी,चँवर 

सोहणी =सुंदर

नव डोळ्या =नया रास्ता

पलक पाँवड़े =किसी की  उत्कंठापूर्वक प्रतीक्षा करना

वारणों =नजर उतरना

बुधवार, नवंबर 10

मन विरहण



कोरा कागज पढ़ मन विरहण 
टेर मोरनी गावे है।
राह निहार लणीहारा री
कागा हाल सुनावे है।।

सुपण रो जंजाळ है बिखरो 
आली-सीळी भोर बिछी। 
सूरज सर पर पगड़ी बांध्या 
 किरण्या देखे है तिरछी।
 फूल-फूल पर रंग बरसाव 
  बगवा बाग सजावे है।

भाव बादली काळी-पीळी 
बूँदा सरिख्या पल बीत्या।
आँधी जैयां ओल्यूँ उमड़े
हाथ साथ का है रीत्या।
सूरत थळियाँ माही निरखे 
लाली पैर रचावे है।

काग फिरे मुंडेर मापतो  
मनड़े ऊपर खोंच करे।
आख्या पाणी झर-झर जावे 
टेढ़ी-मेडी चोंच करे।
पातल पर खुर्चन धर लाई
काला काग जिमावे है।

@अनीता सैनी 'दीप्ति'

शब्द =अर्थ
 
टेर =पुकार, ऊँचा स्वर
कागा =कौवा 
हाल =संदेश 
सुपणे =स्वप्न 
जंजाळ =झंझट, उलझन 
आली-सिली =भीगी-भीगी-सी 
किरण्या = किरण, रश्मियाँ  
काळी-पीळी =काली-पीली 
सरिख्या =जैसा 
बीत्या =बीता हुआ समय  
ओल्यूँ =याद 
ळियाँ=चौखट 
रीत्या =खाली 
मापतो =मापना 
खोंच =झोली 
खुर्चन=किसी चीज का बचा-खुचा अंश