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शनिवार, जुलाई 12

धूल में छिपा समंदर


धूल में छिपा समंदर/ अनीता सैनी
११ जुलाई २०२५
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सब कोई कुछ न कुछ जानते हैं।
कोई पहाड़ जानता है,
कोई नदी।
कुछ-कुछ लोग तो मरुस्थल भी जानते हैं।
वे जानते हैं —
कैसे एक मरुस्थल समंदर पी गया,
और फिर
कैसे धूल उड़ाने लगा,
कैसे आँधियों का होकर रहने लगा।

पर
जानने की इस आपाधापी में
स्त्रियाँ सबसे अधिक 'डर' को जानती हैं।
उनकी गीली आँखें, सूखी होने से डरती हैं 
वे 
समंदर पी कर सूखा रहना नहीं जानती
वे बस डर को वे भली-भाँति जानती हैं।

वे जानती हैं —
कि उनके पास बहुत कुछ है,
बहुत ही अनमोल कुछ।
सदियाँ लगीं इस 'बहुत कुछ' को
आले-दीवालों की तह में छिपाने में।
वे
इस 'बहुत कुछ' को खोने से डरती हैं।

पर
उनके पास
बहुत कुछ है — यह उन्हें नहीं पता,
कि 
उन्होंने यह सब कैसे और कब जाना।