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रविवार, जून 1

कोख से कंठ तक

कोख से कंठ तक / अनीता सैनी
३०मई २०२५
….

भ्रम के बादल
भाव रचते हैं
आत्मा की गीली मिट्टी में —
प्रेम के अंखुए फूटते हैं।

तुमने देखा ही होगा —
मरुस्थल की कोख में
हिलोरे लेता समंदर,
मृगमरीचिका नहीं —
नागफनी को जन्म देता है।

और फिर,
उस नागफनी को
प्रेम में धीरे-धीरे सूखते हुए
भी,
तुमने देखा ही होगा?

और यदि
तुमने नहीं देखा —
तो बस इतना 
कि कैसे
उसके लिखे एक-एक प्रेम-पत्र,
उसी की काया पर उग आए थे
कांटे बनकर।