मनमाँगी मुराद पर मनाया मन को मैंने,
जीवन के हर पड़ाव पर,
पतझड़ के पहलू में बैठ,
बहार के इंतज़ार में बहलाया मन को मैंने |
पतझड़ के पहलू में बैठ,
बहार के इंतज़ार में बहलाया मन को मैंने |
परखते हैं लोग पग-पग पर,
यही दस्तूर है ज़माने का आज,
यही दस्तूर है ज़माने का आज,
इसी दस्तूर को पावन कह,
प्रेम का मरहम, लगाया मन को मैंने |
क़ुबूल नहीं मोहब्बत में शर्त,
इसी शर्त पर समझाया मन को मैंने ,
इसी शर्त पर समझाया मन को मैंने ,
मोहब्बत को महक कह,
मायूसी को महका, गुमराह किया मन को मैंने |
ज़ख़्म जिगर पर जड़े बेइंतिहा,
ज़ख़्म जिगर पर जड़े बेइंतिहा,
हर ज़ख़्म को सहलाया मैंने,
महफ़िल सजा सरगम की,
प्रीत के नग़्मे कह,
ख़ामोशी से सुलाया मन को मैंने |
वक़्त का बदलता चेहरा ,
गुज़रते लम्हात को दिखा,
जज़्बात के जमावड़े को ज़िंदगी से,
जादूगर कह,
फिर मिलाया मन को मैंने |
- अनीता सैनी
फिर मिलाया मन को मैंने |
- अनीता सैनी
बहुत प्यारी रचना सखी।
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार सखी
हटाएंसादर
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 10/08/2019 की बुलेटिन, "मुद्रा स्फीति के बढ़ते रुझानों - दाल, चावल, दही, और सलाद “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय
हटाएंसादर
अप्रतिम सृजन अनु ! हृदयस्पर्शी सृजन ।
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार बहना
हटाएंसादर
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सर
हटाएंसादर
"मोहब्बत को महक कह,
जवाब देंहटाएंमायूसी को महका, गुमराह किया मन को मैंने"
वाह! क्या बात कही है!
बहुत बहुत शुक्रिया सर
हटाएंसादर
परखते हैं लोग पग-पग पर,
जवाब देंहटाएंयही दस्तूर है ज़माने का आज,
इसी दस्तूर को पावन कह,
प्रेम का मरहम, लगाया मन को मैंने |बहुत सुंदर अभिव्यक्ति प्रिय अनिता जी
सस्नेह आभार सखी
हटाएंसादर
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
१२ अगस्त २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
तहे दिल से आभार दी
हटाएंसादर
बहुत सुन्दर रचना जी
जवाब देंहटाएंजी आभार
हटाएंसादर
ऐसे ही बहलाते बहलाते मन समझ जायेगा समर्पण की राह पर चल पड़ेगा..
जवाब देंहटाएंजी बहुत बहुत सुक्रिया दी जी
हटाएंसादर
मुहब्बत की महक के सामने मन को सम्हाना आसान कहाँ होता है ...
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण ...
सही कहा आप ने सर |सादर आभार
हटाएंज़ख़्म जिगर पर जड़े बेइंतिहा,
जवाब देंहटाएंहर ज़ख़्म को सहलाया मैंने,
महफ़िल सजा संगम की,
प्रीत के नग़्मे कह,
ख़ामोशी से सुलाया मन को मैंने |
बहुत ही भावपूर्ण लाजवाब सृजन...
तहे दिल से आभार दी |आप की समीक्षा हमेशा ही उत्साहवर्धन रही है |
हटाएंसादर स्नेह