वे मर रहें हैं,
अपनी ही लाचारी से,
प्रतिदिन लाखों की तादाद में,
कहीं कोई नामोनिशान नहीं !
कुछ मारे भी जाते हैं,
बेबसी के हाथों,
रुतबे की निगाहों से,
शब्दभेदी-बाण से,
किन्तु कहीं ख़ून के धब्बे नहीं !
सभ्यता माँगती है,
त्याग व क़ुर्बानी परिवर्तन के लिये,
मैंने अपने आप से कहा |
तुम जानती हो !
पूँजीवाद का बीजारोपण
राष्ट्रहित में है ?
ज्ञानीजनों की है यही ललकार |
धनकुबेर जताते हैं,
अपने आप को बरगद,
ज्ञानीजनों की है यही ललकार |
धनकुबेर जताते हैं,
अपने आप को बरगद,
उसकी छाँव में,
पनपता है,
शोषण का चिरकालीन चक्रव्यूह,
वे जताते हैं कि वे देते हैं पोषण,
कुपोषित पौध को,
शोषण का चिरकालीन चक्रव्यूह,
वे जताते हैं कि वे देते हैं पोषण,
कुपोषित पौध को,
कमजोर-वर्ग-मध्यम-वर्ग को,
यही वृक्ष प्रदान करता है ख़ुराक़,
किसी भले मानस ने कहा था मुझे,
मैंने फिर अपने आपसे कहा |
हम स्वतंत्र हैं !
क्या यह जनतंत्र है ?
अधीन है,
एक विचारधारा के,
कुंठा के कसैलेपन का कोहराम मचा है,
अंतःस्थ में,
कुपोषित हो गये,
हमारे आचार-विचार,संवेदनाएँ-सरोकार,
अमरबेल-सा गूँथा है हवा में जाल,
नमी,पोषक तत्त्व का नित्य करते हैं,
वे सेवन,
देखो ! पालनकर्ता हुए न वे हमारे,
और मैंने फिर अपने आप से कहा !
© अनीता सैनी
यही वृक्ष प्रदान करता है ख़ुराक़,
किसी भले मानस ने कहा था मुझे,
मैंने फिर अपने आपसे कहा |
हम स्वतंत्र हैं !
क्या यह जनतंत्र है ?
अधीन है,
एक विचारधारा के,
कुंठा के कसैलेपन का कोहराम मचा है,
अंतःस्थ में,
कुपोषित हो गये,
हमारे आचार-विचार,संवेदनाएँ-सरोकार,
अमरबेल-सा गूँथा है हवा में जाल,
नमी,पोषक तत्त्व का नित्य करते हैं,
वे सेवन,
देखो ! पालनकर्ता हुए न वे हमारे,
और मैंने फिर अपने आप से कहा !
© अनीता सैनी
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में " गुरुवार 26 सितम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार मीना दी सांध्या दैनिक मुखरित मौन में मुझे स्थान देने के लिए |
हटाएंसादर
हमारे आचार-विचार,संवेदनाएँ-सरोकार,
जवाब देंहटाएंअमरबेल-सा गूँथा है जाल
बेहतरीन सृजन....
सस्नेह आभार कामिनी दी सुन्दर समीक्षा हेतु
हटाएंसादर
बेहद संवेदनशील विषय पर भावों की सराहनीय अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंवैचारिक मंथन को आकृष्ट करती सारगर्भित रचना है अनु।
सस्नेह आभार प्रिय श्वेता दी आपकी सुंदर समीक्षा से रचना को सार्थकता मिली, आप का स्नेह और सानिध्य यूँ ही बना रहे
हटाएंसादर
बहुत ही अच्छा लिखा है आपने ...
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार आदरणीय दी जी-उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु
हटाएंसादर
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २७ सितंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
तहे दिल से आभार दी पाँच लिंकों का आनंद पर मुझे स्थान देने हेतु
हटाएंसादर
बहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर
हटाएंसादर
शानदार भावाभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंयलगार हो
सादर आभार दी-आप की समीक्षा हमेशा ही उत्साहवर्धक रहती है मेरे लेखन को और प्रेरित करती है
हटाएंआप का सानिध्य हमेशा बना रहे
सादर
शानदार अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय
हटाएंसादर
वाह बहुत सुंदर!अमर बेल सा गजब उपमा बहुत ठोस बिंब वास्तविकता की खुरदरी धरातल पर जबरदस्त सृजन ।
जवाब देंहटाएंक्षोभ पीड़ा तंज व्यंग सभी एक साथ समाहित।
शानदार।
सादर नमन प्रिय कुसुम दी-आप की साहित्यक व्याख्या का ज़बाब नहीं. प्रत्येक पहलू को बड़ी बारीकी से पढ़ती है आप |मेरे लेखन को और प्रवाह प्रदान करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आप का. आप का स्नेह और सानिध्य हमेशा बना रहे
हटाएंसादर
सर मैं आपके ब्लॉग का नियमित पाठक हूँ और मुझे आपकी लिखने की कला काफी अच्छी लगती है। आप मेरी भी लिखी हुई कविता पढ़ सकतें है यहाँ क्लिक कर
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय 🙏
हटाएंबहुत ही अच्छा लिखा है बेहतरीन
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार आदरणीया दी आप ने रचना को अपने स्नेह से नवाज़ा
हटाएंसादर
शानदार अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर आप का उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु
हटाएंआप की समीक्षा से रचना को प्रवाह मिला
प्रणाम
सादर
बेहतरीन रचना सखी 👌👌
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार सखी
हटाएंसादर