रविवार, फ़रवरी 24

स्मृति


                                                 

                     हृदय में करुण  रागिनी, 
                  साँसें  विचलित कर जाती, 
                        मिटे  माटी  के  लाल, 
               क्यों  सुकून  की नींद आ जाती ?

                हाहाकार गूँज  रहा  कण-कण में,  
                       स्मृति   दौड़  आ  जाती, 
                       वेदना  असीम  हृदय  की, 
                      हवाओं से पैगाम लिखवाती|

                      व्यथा व्योम की सुन मानुष,  
                         दामन  में  दर्द  छुपाती, 
                      जला रही  पद चिह्न सपूत के,  
                     करुणा  के  आँसू  बरसाती|

                  चातक-सी वो करुणार्द्र पुकारें
                     हृदय  को आहत कर जातीं 
                      बेसुध-सी  सुप्त  व्यथाएँ 
                        सिसक-सिसककर 
                    क्षितिज पटल पर सो जाती |

                               - अनीता सैनी 

38 टिप्‍पणियां:

  1. चातक सी वो करुणार्द्र पुकारें
    ह्रदय को आहत कर जाती
    बेसुध सी सुप्त व्यथाएँ
    सिसक - सिसक कर
    क्षतिज पटल पर सो जाती |
    बहुत ही सुंदर देशभक्ति रचना। अनंत शुभकामनाएं ।

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  2. ह्रदय में करुण रागिनी
    सांसे विचलित कर जाती
    मिटे माटी के लाल
    क्यों सुकून की नींद आ जाती ?
    बहुत खूब ।

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  3. व्यथा व्योम की सुन मानुस
    दामन में दर्द छुपाता
    जला रहा पद -चिन्ह पूत के
    करुणा के आँसू बरसाता
    मर्मस्पर्शी रचना

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  4. दुखद स्मृतियां हमेशा दर्द ही देंगी.... बहुत ही मार्मिक हृदयस्पर्शी रचना...

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  5. मिटे माटी के लाल
    क्यों सुकून की नींद आ जाती
    हृदय स्पर्शी रचना ।

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  6. बहुत सुंदर, भावपूर्ण

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  7. मर्मस्पर्शी और भावपूर्ण सृजन अनीता जी सस्नेह ।

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  8. बहुत ही सुंदर सृजन सखी ,स्नेह

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  9. बेहतरीन रचना सखी

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  10. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25-02-2019) को "आईने तोड़ देने से शक्ले नही बदला करती" (चर्चा अंक-3258) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. सह्रदय आभार आदरणीय चर्चा मंच पर मुझे स्थान देने के लिए |
      सादर

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  11. ह्रदय में करुण रागिनी
    सांसे विचलित कर जाती
    मिटे माटी के लाल
    क्यों सुकून की नींद आ जाती ?
    बहुत ही भावपूर्ण मर्मस्पर्शी रचना प्रिय अनीता जी | माटी के लाल मिट कर गौरवशाली इतिहास तो बन जाते हैं पर उनकी कमी कौन पूरी करे ?कितने मन व्यथित हो मायूसी के ताम में खो जाते होंगे | मन में असीम करुना जगाती ये रचना बहुत मार्मिक है सखी |

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    1. सस्नेह आभार प्रिय सखी रेणु जी |
      आप का ब्लॉग पर तहे दिल से स्वागत है |हमेशा की तरह आज भी आपकी टिप्णी मन को सुकून के क्षण में डूबों गई | ज़ब से होस सभाला है यही अनुभूति आसपास रहती है न चाहते हुए भी शब्दों में झलक जाती है |
      आप को बहुत सा स्नेह | आप का साथ बना रहे |
      सादर

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  12. व्यथा व्योम की सुन मानुष
    दामन में दर्द छुपाता
    जला रहा पद -चिन्ह पूत के
    करुणा के आँसू बरसाता ......
    बहुत सुंदर रचना।

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  13. दिल को छूती बहुत ही सुंदर रचना, अनिता दी।

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  14. सस्नेह आभार सखी
    सादर

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