शनिवार, अप्रैल 13

सृष्टि की प्रीत



पीड़ा   सृष्टि  की   आँखों   में  झलकी, 
साँसों   से  किया  उसका  तिरस्कार, 
अल्हड़   हँसी   दौड़ी   हृदय   में, 
मानव   सृष्टि  का  जीवन   आधार |

बुना    ख़्वाब  धरा  का, 
अधरों  से    दिया  रूप  साकार, 
बेचैनी  हृदय  पर  डोली , 
 क्षितिज के कोर पर आया  प्रभाकर, 
 ढली  शाम   हुए   दीदार |

थक   हारकर  बैठा   दिवाकर, 
सृष्टि  ने  किया  स्नेह  से  सत्कार, 
बिन  वजह  जताता  हूँ  क्रोध, 
बहुत  आता  है  मानव  पर  प्यार |

अनायास   ही  खिलखिला  उठी, 
न  कर दिनकर  मन  पर  वार, 
काम  घनेरे  दर  पर  मेरे,  
मनु  अपने  कर्मों  का  हक़दार |

विदा   हुआ शशि, 
कलेजे  से  लग   किया   दीदार, 
बरसाना   स्नेह  की  चाँदनी,  
मनु  शतरूपा  के  जीवन  में, 
 न   हो  अब   कोई    तक़रार |

- अनीता सैनी 

21 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही मनभावक रचना ।

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  2. बहुत बहुत सुंदर अभिव्यक्ति अप्रतिम अनुपम।

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    1. प्रिय दी आप का तहे दिल से आभार
      सादर

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (15-04-2019) को "भीम राव अम्बेदकर" (चर्चा अंक-3306) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    - अनीता सैनी

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  4. चांद प्रतीक है प्रेम का और जहाँ प्रेम हो शीतल चांदनी तो बरसेगी ही ...
    सुन्दर रचना ...

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  5. बहुत खूबसूरत रचना सखी.. 👌 👌 👌

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    1. प्रिय सखी सुधा आप को बहुत सा स्नेह और तहे दिल से आभार
      सादर

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  6. बहुत सुंदर सृष्टि की प्रीत...सारगर्भित गूढ़ मनभावों से सजी रचना प्रिय अनिता...👍

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    1. प्रिय श्वेता जी आप का तहे दिल से आभार
      सादर

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  7. बेहतरीन रचना सखी 👌

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