मंगलवार, अक्तूबर 22

आम आदमी उस वक़्त बहुत ख़ास होता है



आज जब मैंने 
तुमको तड़पते हुए देखा 
शक्तिहीन अस्तित्त्वहीन 
निःशस्त्र और दीन 
आँखों में आँसू 
माथे पर सलवटें  
भविष्य को सजाने की चाह में 
वर्तमान को 
कुचलता हुआ देखा 
प्रत्येक पाँच वर्ष में 
तुम उल्लासित मन लिये डोलते हो 
वे तुम्हारे विचारों का 
 झाड़ने लगते जाले 
 जन-गण  के 
पोतने लगते हैं 
 नाख़ून 
नीले रंग की 
चुनावी स्याही से  
शब्दों का खोखला खेल 
शै-मात का झोल 
ग़रीबों को गंवार कह 
बड़प्पन को बुख़ार 
चंद सिक्कों का लिये 
डोलते हैं ख़ुमार  
सिसकियों में 
सिमटते नज़र आये तुम 
और तुम ख़ामोश ही  रहना 
टाँग देना ज़ुबा पर ताला 
तपते रहना ता-उम्र 
जलाना अलाव मेहनत का 
 ढालते  रहेंगे वे तुम्हें 
मनचाहे आकार में 
पहना देगें 
चोला आम आदमी का 
तब तुम समझना 
तुम आम आदमी हो  
और वे बहुत ख़ास  हैं  
परन्तु तुम जानते हो 
खास आदमी पता नहीं क्यों 
चुनाव के वक़्त आम बन जाता है 
और तुम ख़ास बन 
जलाना शक्ति की ज्वाला 
और एक-एक कर बीन लेना अपने 
सभी स्वप्न 
क्योंकि तुम आम आदमी हो |

© अनीता सैनी 

30 टिप्‍पणियां:

  1. अद्भुत ...,मन्त्रमुग्ध हूँ मैं । सीधे सरल शब्दों में गहन बात । लाजवाब सृजन अनीता जी ।

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    1. सस्नेह आभार आदरणीया मीना दी जी
      सादर

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  2. कभी आम कभी खास आदमी, वक़्त-वक़्त की बात रहती है
    बहुत अच्छी रचना

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    1. सस्नेह आभार आदरणीया कविता दी जी
      सादर

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (23-10-2019) को    "आम भी खास होता है"   (चर्चा अंक-3497)     पर भी होगी। 
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
     --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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    1. सहृदय आभार आदरणीय मुझे चर्चामंच पर स्थान देने हेतु.
      सादर

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  4. उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीया विभा दी जी
      सादर

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना 23 अक्टूबर 2019 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. सस्नेह आभार आदरणीया पम्मी जी मुझे पंच लिंकों में स्थान देने हेतु.
      सादर

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  6. बिल्‍कुल सच कहा .....गहरे उतरते शब्‍द ...आभार ।

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  7. .... "नीले रंग की चुनावी स्याही से शब्दों का खोखला खेल "वाह..!! कमाल की पंक्तियां इन चंद पंक्तियों ने भारतीय वोटर की भयावह स्थिति को बयान कर दिया..दरअसल ये हर एक मध्यम आम भारतीय इंसान की कहानी है ..जब तक स्याही उंगली में नही लगी है हमारी महत्ता तब तक ही होती है तत्पश्चात वही ढाक के तीन पात बहुत अच्छा लिखा आपने..!!

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    1. सस्नेह आभार प्रिय अनु सुन्दर समीक्षा और रचना का मर्म स्पष्ट करने हेतु.
      सादर

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  8. चुनाव के वक़्त आम बन जाता है

    BAHUT HI SAARTHAK AUR SATEEK RCHNAA

    Bahut gehan baat bahut sarltaa se keh di aapne

    bdhaayi

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  9. कमाल की रचना ! अत्यंत गहन विचार। बधाई इस अद्भुभुत रचना हेतु।

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    1. सादर आभार आदरणीया मीना दी मनमोहक प्रतिक्रिया के लिये। आपकी टिप्पणी ने रचना का मान बढ़ाया है।
      सादर।

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  10. सामायिक विविध विषयों पर आपकी लेखनी बहुत सटीक और तुलनात्मक विश्लेषण के साथ चलती है,
    बहुत बहुत साधुवाद ।
    सदा यूं ही अपनी दृष्टि को विस्तार देते रहिए और सार्थक लेखन करते रहिए।

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    1. सादर आभार आदरणीया कुसुम दी जी सुंदर प्रतिक्रिया के लिये। कुछ मुद्दे अनायास ही मन को मथने लगते हैं तो क़लम भी चल पड़ती है।
      आपका स्नेह यों ही बरसता रहे।
      सादर।

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  11. वाह!
    सुंदर सामयिक सृजन जो आम आदमी की कश्मकश को बखूबी उजागर करती हुई ख़ास आदमी अर्थात नेता की मानसिकता और आम आदमी के प्रति उसकी हिकारत को उकेरा है।
    मेहनतकश लोगों को उनकी मनोदशा के लिये रास्ता सुझाया है।आदमी की नीयत और नियति पर कटाक्ष करते हुए सामाजिक चेतना का संचार किया है।
    बधाई एवं शुभकामनाएं।
    लिखते रहिए।

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  12. सादर आभार आदरणीय सर रचना का अपनी सारगर्भित प्रतिक्रिया से मान बढ़ाने के लिये। आपसे मिला प्रोत्साहन मुझे अपने लेखन में सुधार को प्रेरित करता है। आपका सहयोग और समर्थन यों ही मिलता रहे।
    सादर।

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  13. यही छलावा है जो ७२ सालों से हो रहा है हमारे साथ ...
    शायद कभी कोई क्रान्ति आये ...
    गहरी और उद्वेलित करती रचना ...

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    1. नि:शब्द हूँ आदरणीय आपकी व्याख्यात्मक समीक्षा पर
      सादर मनन आप को

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