शुक्रवार, अप्रैल 3

कहे वैदेही क्यों जलाया?


जलती देह नारी की विधाता, 
 क्रूर  निर्मम प्राणी  रचाया ।
 क्रोध द्वेष दंभ हृदय में इसके,
 क्यों अगन तिक्त भार बढ़ाया ।

सृजन नारी का सृजित किया है,
 ममत्त्व वसुधा पर लावन को।
दुष्ट अधर्मी मानव जो पापी,
आकुलता सिद्धी पावन को।
भद्र भाव का करता वो नाटक
कोमलांगी को है जलाया ।‌।

जीवन के अधूरे अर्थ जीती,
सार पूर्णता का समझाती ‌।
क्षणभंगुर जीवन भी है बोती, 
हर राह पर जूझती  रहती ।
निस्वार्थ अनल में जलती रहती
तपती काया को सहलाया ।।

कोमल सपने  बुनती जीवन में,
समझ सका ना इसको कोई‌।
नारायणी  गंगजल-सी शीतल,
 देख  चाँदनी भी हर्षाई।
सम्मान स्नेह सब अर्पन करती,
कहे  वैदेही  क्यों जलाया ।।

© अनीता सैनी

8 टिप्‍पणियां:

  1. नारी जीवन व जीवन्तता, दोनो एक दूसरे के पूरक हैं । ऐसे में, पुरुष जीवन की सहभागिता और दोनों की एक दूसरे पर निर्भरता को भी हम अनदेखा नहीं कर सकते।
    शुभकामनाएँ ।

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 03 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सादर आभार आदरणीया दीदी संध्या दैनिक में स्थान देने हेतु.
      सादर

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  3. बहुत सुंदर भावपूर्ण सृजन अनीता जी

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    1. सादर आभार आदरणीय दीदी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
      सादर

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