शनिवार, अप्रैल 4

देश नहीं पहले-सा मेरा



पतित हुआ लोगों का चेहरा, 
देश नहीं पहले-सा मेरा।
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 सुखद नहीं पेड़ों की छाया,  
सबके मन में माया-माया,
लालच ने सबको है घेरा, 
देश नहीं पहले-सा मेरा।

मन में बहुत निराशा भरते
ओछे यहाँ विचार विचरते 
उजड़ रहा खुशियों का डेरा।
देश नहीं पहले-सा मेरा।

पुतली सिकुड़ी मानवता की,
जीत हो रही दानवता की,
अंधकार का हुआ बसेरा, 
देश नहीं पहले-सा मेरा।

घृणा बसी है घर-आँगन में, 
प्रेम बहिष्कृत हुआ चमन में,
गली में घूमे द्वेष लुटेरा, 
देश नहीं पहले-सा मेरा।

तरु जल को लाचार हो गये,
पैने अत्याचार हो गये,
छाया है अँधियार घनेरा, 
देश नहीं पहले-सा मेरा।

चीत्कार करते हैं दादुर, 
आत्मदाह को मन है आतुर,
दूर-दूर तक नहीं सवेरा, 
देश नहीं पहले-सा मेरा।

चातक कितना है बेचारा,
सूखी है सरिता की धारा,
जीवन आज नहीं है चेरा, 
देश नहीं पहले-सा मेरा।

© अनीता सैनी 

12 टिप्‍पणियां:

  1. पतित हुआ लोगों का चेहरा,
    देश नहीं पहले-सा मेरा।
    --
    सुखद नहीं पेड़ों की छाया,
    सबके मन में माया-माया,
    लालच ने सबको है घेरा,
    देश नहीं पहले-सा मेरा।

    मन में बहुत निराशा भरते
    ओछे यहाँ विचार विचरते
    उजड़ रहा खुशियों का डेरा।
    देश नहीं पहले-सा मेरा।
    बहुत सुन्दर अनीता जी लिखते रहिये ••••

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  2. वाह वाह वाह वाह वाह वाह क्या कहने है

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  3. पतित हुआ लोगों का चेहरा,
    देश नहीं पहले-सा मेरा।
    --
    सुखद नहीं पेड़ों की छाया,
    सबके मन में माया-माया,
    लालच ने सबको है घेरा,
    देश नहीं पहले-सा मेरा।
    क्या बात है !!!! देश में फैले विषैले वातावरण को हुबहू शब्दांकित करता सराहनीय सृजन|

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  4. पुतली सिकुड़ी मानवता की,
    जीत हो रही दानवता की,
    अंधकार का हुआ बसेरा,
    देश नहीं पहले-सा मेरा।
    वाह!!!अनीता जी शानदार गीत रचा है आपने
    देश के मौजूदा हालातोंं से खिन्न कवि मन उद्वेलित होकर अपने देश की प्रचीन संस्कृति की यादों में रो पड़ा है।
    बहुत ही लाजवाब सृजन।

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  5. सुन्दर प्रस्तुति

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