शुक्रवार, मई 22

श्रमजीवी श्रम धावक


कुछ परछाइयाँ मायूस हुईं !
कुछ शीश टिकाए बैठीं घुटनों पर 
कुछ बौराई-सी नम आँखों से 
पथरीले पथ पर टहल रहीं।  

 घने अंधियारे में तितर-बितर 
कुछ दौड़ जीवन की लगा रहीं। 
पथराई आँखों से 
कुछ ज़िंदगी जग में ढूँढ़ रहीं। 

टहल-क़दमी की नहीं आवाज़ 
प्रत्यक्ष नहीं परछाई किसकी 
कैसी कौन रहीं वो? 
सदियों से नहीं ढोई  हृदय ने 
ऐसी पीड़ा ढो रहीं वह।  
व्यथित मन की व्याकुलता 
बहुतेरी सांसों पर डोल रहीं।  

क्रमबद्ध  संयम  संभाले 
बढ़ाती क़दम बारंबार। 
बेबस बेसहारा मजबूर नहीं 
यही बोल रही वो। 
नेता, राजनेता, अभिनेता-सा 
अभिनय नहीं 
श्रमजीवी श्रम धावक श्वेद संग 
बतियाती वो। 

निगलना चाहता उन्मुख काल 
लिए धूप-पानी का वार 
असहाय होने का नहीं गढ़ती 
फिर भी सुंदर स्वाँग वो। 
सामर्थ्य सहेजे सद्भावना 
फलीभूत भुजाओं में  
माणस निवाले से नहीं भरती 
 जीवन उड़ान वो। 

©अनीता सैनी 'दीप्ति'

24 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही खूबसूरत पंक्तियां ,बेहतरीन रचना प्यारी बहन ,बहुत अच्छा लिखती हो ,बधाई हो

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    1. सादर आभार आदरणीया दीदी मनोबल बढ़ाती सुंदर प्रतिक्रिया हेतु. स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे.
      सादर

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  2. मजलूरों की स्थिति का सुन्दर चित्रण।

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    1. सादर आभार आदरणीय सर आशीर्वाद बनाए रखे.
      सादर

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 24 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सादर आभार आदरणीय सर पाँच लिंकों पर स्थान देने हेतु.
      सादर

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  4. सामयिक चर्चा की गई है, शब्दों को बखूबी पिरोया गया है

    आपकी लेखनी युहीं अविरल चलती रहे।

    🙏🏻🙏🏻💐💐

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    1. सादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती सुंदर प्रतिक्रिया हेतु. आशीर्वाद बनाए रखे.
      सादर

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    1. सादर आभार आदरणीय सर सुंदर प्रतिक्रिया हेतु.
      सादर

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    1. सादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती समीक्षा हेतु.
      सादर

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  7. निगलना चाहता उन्मुख काल
    लिए धूप-पानी का वार
    असहाय होने का नहीं गढ़ती
    फिर भी सुंदर स्वाँग वो।
    सामर्थ्य सहेजे सद्भावना
    फलीभूत भुजाओं में
    माणस निवाले से नहीं भरती
    जीवन उड़ान वो।

    हृदय स्पर्शी सृजन, सामायिक परिस्थितियों में श्रमिकों की बेबसी, घर की तरफ भागती जीजिविषा पर बहुत सार्थक लेखनी चलाई है आपने प्रिय अनिता एक चित्र दृश्य उत्पन्न करती गहन रचना।
    सस्नेह।

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    1. सादर आभार आदरणीया कुसुम दीदी सुंदर सारगर्भित मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु. स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे.
      सादर

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  8. यथार्थ और मार्मिक सृजन अनीता ,सादर नमन

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    1. सादर आभार आदरणीया कामिनी दीदी स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे.
      सादर

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  9. निगलना चाहता उन्मुख काल
    लिए धूप-पानी का वार
    असहाय होने का नहीं गढ़ती
    फिर भी सुंदर स्वाँग वो।
    सामर्थ्य सहेजे सद्भावना
    फलीभूत भुजाओं में
    माणस निवाले से नहीं भरती
    जीवन उड़ान वो।
    सारी आपदाएं एक साथ सर चढ़कर बोल रही हैं बेचारा मजदूर कितना धीरज रखे...
    बहुत ही हृदयस्पर्शी सृजन।

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    1. सादर आभार आदरणीया सुधा दीदी मनोबल बढ़ाती सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु.स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे.
      सादर

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    1. सादर आभार आदरणीय सर आशीर्वाद बनाए रखे.
      सादर

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  11. वाह जी बेहतरीन रचना

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    1. सादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती सुंदर प्रतिक्रिया हेतु.
      सादर

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  12. अद्भुत लेखन है आपका अति सुन्दर प्रिय अनिता जी।

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    1. सादर आभार आदरणीय दीदी मनोबल बढ़ाती सुंदर प्रतिक्रिया हेतु.स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे.

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