शुक्रवार, सितंबर 4

क्यों मौन है?


 मोती-सी बरसे बूँदें धरा के आँचल पर 
तब पात प्रीत के धोती है बरसात 
पल्लवित लताएँ चकित हैं अनजान-सी 
रश्मियाँ अनिल संग जोहती जब बाट है  
ऊँघते स्वप्न की समेटे दामन में सौग़ात 
पुकारती आवाज़ का कोलाहल क्यों मौन है?

धैर्य बादलों का टूटा या नभ से छूटा भार 
शनै:-शनै: तम का घटाओं ने गढ़ा आकार है  
जुगनुओं की बिखरी पाती पर शोक 
खिलते कमल के असुवन का पहने हार है 
गिरती गाज को देखकर मूँदे नयनों को 
चमक की मुस्कान पर आह्नान क्यों मौन है?

सीपी की कोख में विचलित मोती की वेदना
 हिम हिय पर तैरते श्यामल घन का बरसना 
 प्रभात कपोल पर भविष्य शिशु का सिसकना 
नक्षत्र बूँद का हरण मुकुल का मुरझाना 
स्वप्नशाला की शैया पर अट्हास का आहना  
निशा नींद के उच्छवास पर वर्तमान क्यों मौन है?

@अनीता सैनी 'दीप्ति'

24 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 04 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय सर संध्या दैनिक में स्थान देने हेतु।
      सादर

      हटाएं
  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (05-09-2020) को   "शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ"   (चर्चा अंक-3815)   पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
      सादर प्रणाम

      हटाएं
  3. बहुत सुंदर रचना,अनिता दी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. तहे दिल से आभार प्रिय ज्योति बहन।अत्यंत हर्ष हुआ आप ब्लॉग पर पधारीं।स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

      हटाएं
  4. उत्तर
    1. सादर आभार सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर प्रणाम

      हटाएं
  5. बहुत सुंदर सृजन
    भावों के अलग प्रयोग मोहक लगे, प्रश्न के रूप में बिंब सुंदर है।
    सार्थक प्रतीक।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभारी हूँ प्रिय कुसुम दी आपकी प्रतिक्रिया मेरा संबल है।अत्यंत हर्ष हुआ।स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

      हटाएं
  6. उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

      हटाएं
  7. मन में उठते भावों को प्रकृति के अनगिनत रुपों में तलाशना और साम्यता स्थापित करना...अद्भुत सृजनात्मकता । अति सुन्दर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभारी हूँ प्रिय मीना दी आपकी प्रतिक्रिया मेरा संबल है।अत्यंत हर्ष हुआ।स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

      हटाएं
  8. उत्तर
    1. आभारी आदरणीय प्रतिभा दीदी।अत्यंत हर्ष हुआ आपका मार्गदर्शन मिला।आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

      हटाएं
  9. बेहतरीन रचना बहना।
    शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभारी हूँ बहना अत्यंत हर्ष हुआ आपकी प्रतिक्रिया मिली।
      साथ यों ही बना रहे।
      सादर

      हटाएं
  10. प्रकृति के अनेक रूपों को दर्शाती सुंदर रचना। कविता के शब्द शिल्प की तो विशेष तारीफ करनी पड़ेगी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभारी हूँ प्रिय मीना दीदी आपकी प्रतिक्रिया मिली।अत्यंत हर्ष हुआ। साथ यों ही बना रहे।
      सादर

      हटाएं
  11. एक अनुत्तरित प्रश्न लिए मन का सुंदर चित्रण ,बेहतरीन सृजन अनीता जी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय दी।स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

      हटाएं
  12. जीवन के अनेक पल ऐसे होते हैं जब कुछ नहीं सूझता ... सब कुछ मौन हो जाता है उस समय ....

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

      हटाएं