मंगलवार, दिसंबर 15

कैसे?

 बहुत भिन्न हैं वे तुम लोगों से 

तुम्हारे लिए वाकचातुर्यता  शग़ल है 

तलाशते हैं वे संबल तुम्हारे कहे शब्दों में 

तुम षड्यंत्र की कोख  से

नित नए  पैदा करते हो शकुनी

हुज़ूर! समय पर फेंके पासे कैसे छिपाओगे?

  

तुम तरक़्क़ी की सीढ़ियों को 

गोल-गोल घुमावदार बनाते हो 

उन पर ग़लीचा गुमान का बिछाया  

अपेक्षा को उन्नति का जामा 

उद्देश्य को लिबास प्रगति का पहनाया 

कूड़े के ढ़ेर पर महल मंशा का कैसे सजाओगे?


ज़िद को सफलता का मफलर 

उस पर तमगेनुमा बटन जड़वाए

फटे कुर्ते पर रफ़ू नुमा सिलाई

धागे को सुंदरता के ढोंग से ढका है 

भविष्य की  काया से लपेटी हैं कतरन

कड़ाके की बहुत ठंड है दिसंबर में

तुम असफलता कैसे  छिपाओगे?


@अनीता सैनी 'दीप्ति'

30 टिप्‍पणियां:

  1. ज़िद को सफलता का मफलर ,

    उस पर तमगेनुमा बटन जड़वाएँ

    फटे कुर्ते पर रफ़ू नुमा सिलाई

    धागे को सुंदरता के ढोंग से ढका है

    भविष्य के बदन से लपेटी हैं कतरन
    बहुत बहुत सुन्दर

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 16 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया दिव्या जी सांध्य दैनिक पर स्थान देने हेतु।
      सादर

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  3. भविष्य के बदन से लपेटी हैं कतरने

    कड़ाके की बहुत ठंड है दिसंबर में

    तुम असफलता कैसे छिपाओगे?
    ..।सटीक तथ्य..।सुंदर रचना..।

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  4. हरिः ॐ तत्सत्
    भविष्य के बदन से लपेटी हैं कतरने
    कड़ाके की बहुत ठंड है दिसंबर में

    बहुत ही सुन्दर अभिव्यति
    सदर नमन
    आचार्य प्रताप
    प्रबंध निदेशक
    अक्षर वाणी संस्कृत सामाचार पत्रम

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर।
      सादर

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  5. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17.12.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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    1. सादर आभार आदरणीय सर चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।

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  6. बहुत भिन्न हैं वे तुम लोगों से
    तुम्हारे लिए वाकचातुर्यता शग़ल है
    तलाशते हैं वे संबल तुम्हारे कहे शब्दों में
    तुम षड्यंत्र की कोख से
    नित नए पैदा करते हो शकुनी
    हुज़ूर! समय पर फेंके पासे कैसे छिपाओगे?
    ....बहुत ही उपयुक्त आकलन करती बेहतरीन ।।।।। समसामयिक व प्रासंगिक। ।।।। आँखे खोल देने रचना। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया अनीता जी।

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  7. अत्यंत मर्माघाती ... भेदती हुई ... बस... आह !

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  8. तुम षड्यंत्र की कोख से
    नित नए पैदा करते हो शकुनी
    हुज़ूर! समय पर फेंके पासे कैसे छिपाओगे?
    छुपा ही लेते हैं इनके पैदा किए शकुनि इनके फैंके पासों को....
    बहुत सुन्दर धारदार लाजवाब सृजन
    वाह!!!!

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  9. भविष्य की काया से लपेटी हैं कतरन

    कड़ाके की बहुत ठंड है दिसंबर में

    तुम असफलता कैसे छिपाओगे?हमेशा की तरह प्रभावशाली लेखन - - सत्य का परावर्तन करती हुई, नमन सह आदरणीया अनीता जी।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर।
      सादर प्रणाम

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  10. बहुत से नए बिम्ब समेट कर बुनी अच्छी रचना ...

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