मंगलवार, दिसंबर 14

विभावरी



चाँद-सितारा जड़ी ओढ़णी

पुरवाई दामण भागे।

बादळ माही हँसे चाँदणी

घूँघट में गोरी लागे।।


 मेंदी राच्यो रंग सोवणो

गजरे रा शृंगार सजे

ओस बूँदया आँगण बरसे 

हिवड़े मोत्या हार सजे

लोग लुगाया नजर उतारे

काँगण डोरा रे धागे।।


अंबर माही बिजळी गरजे 

 मेह खुड़क बरसावे है

छाँट पड़े हैं मोटी-मोटी 

काळजड़ो सिलगावे है

दशों दिशा लागे धुँधराई

उळझ मन री छोर सागे।।


चंद्र फूल री क्यारी महकी 

रजनी उजलो रंग भरे

चाँद कटोरो मोदो पड़गो

प्रीत रंग रा तार झरे।

पता ऊपर मांडे मांडणा 

रात सखी म्हारी जागे।।


@अनीता सैनी 'दीप्ति'

शब्द -अर्थ

काळजड़ो  =कलेजा

सिलगावे =जलता है, सुलगता है

हिवड़े= हृदय

 मेंदी=मेहंदी

राच्यो =रचना

सोवणो =मोहक सुहावना

गजरा =हाथ में पहने का आभूषण

कागँन डोरा =एक तरह का नजर उतारने का धागा।

खुड़क= जोरदार आवाज 

मोदो=उलटा

 आधी रचना में रात का वर्णन है मानवीकरण और उपमाओं से सजी है पूरी रचना।

चाँद सितारो से जड़ी ओढ़णी है 

पूरबी हवा का आँचल लहर रहा है,

बादल में हँसती चाँदनी घूंघट में कामिनी जैसे लग रही है।


चांदनी में हरियाली मेंहदी सी सुहानी दिख रही है।

फूलों से सजी डालियाँ जैसे गजरे पहने हैं।

(गजरा हाथ में पहने का आभूषण )


ओस बूँद आँगण में बिखरी है जैसे सुंदरी के गले में  मोती का हार।

ऐसी सुंदर रात की नजर नर नारी उतार रहे हैं।


अब विरहन के भाव


अंबर में बिजळी गरज रही है

जोरदार आवाज से मेह बरस रहा है जिससे कालजे में आगसी सिलगती है,और दसों दिशा मन की भावनाओं में उलझ कर धुंधली सी दिखती है।

(या आंख में यादों का पानी सब कुछ धुंधला... )


चंद्र रूपी फूल रकी क्यारी महक रही है,चांदनी रात उजाला भर रही है और चाँद उल्टे कटोरे सा दिख रहा है जिसससे किरणें प्रीत सी झर रही है,और पत्ते पत्ते पर खोलनी कर रही है,और ये सब देख सखी (विरहन) सारी रात जग रही

35 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (15-12-2021) को चर्चा मंच        "रजनी उजलो रंग भरे"    (चर्चा अंक-4279)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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    1. आभारी हूँ आदरणीय सर चर्चा मंच पर स्थान देने हेतु।
      सादर

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  2. चाँद-सितारा जड़ी ओढ़णी
    पुरवाई दामण भागे।
    बादळ माही हँसे चाँदणी
    घूँघट में गोरी लागे।।
    प्रकृति के सौंदर्य के चार चांद लगाता सटीक सार्थक एवं सारगर्भित सृजन।

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    1. आभारी हूँ आदरणीय मीना दी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर स्नेह

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  3. चंद्र फूल री क्यारी महकी

    रजनी उजलो रंग भरे

    चाँद कटोरो मोदो पड़गो

    प्रीत रंग रा तार झरे।

    पता ऊपर मांडे मांडणा

    रात सखी म्हारी जागे।। वाह, प्रकृति का सुंदर नायाब चित्रांकन ।

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    1. आभारी हूँ आदरणीय जिज्ञासा दी जी।
      सादर स्नेह

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    1. आभारी हूँ आदरणीय शिवम जी।
      सादर आभार

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  5. क्या प्रशंसा करूं राजस्थानी मिट्टी की गंध में पगे इस सुंदर गीत की? मन का पोर-पोर रससिक्त हो गया है।

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    1. आभारी हूँ आदरणीय जितेंद्र जी सर आपकी प्रतिक्रिया से सृजन को मान मिला। मनोबल बढ़ाने हेतु बहुत बहुत शुक्रिया।
      सादर

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  6. उत्तर
    1. आभारी आदरणीय दीपक जी सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

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  7. मेंदी राच्यो रंग सोवणो

    गजरे रा शृंगार सजे

    ओस बूँदया आँगण बरसे

    हिवड़े मोत्या हार सजे

    वाह बेहद खूबसूरत रचना 👌👌

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  8. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १७ दिसंबर २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. आभारी हूँ श्वेता दी मंच पर स्थान देने हेतु।
      सादर स्नेह

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  9. बहुत बहुत सुंदर ।
    लावण्य से भरपूर।
    राजस्थान अपने वीर और श्रृंगार रस काव्य सृजन के लिए सदा अग्रणी रहा है प्रिय अनिता आप अपने अभिनव लेखन अंदाज से इस परंपरा को सहज ही गति प्रदान कर रहे हो ।
    साधुवाद ।
    अनुपम सृजन।

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    1. अत्यंत आभार आदरणीय कुसुम दी जी आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा उत्साह द्विगुणित।
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर स्नेह

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    1. आभारी हूँ आदरणीय दी।
      अत्यंत हर्ष हुआ आपकी प्रतिक्रिया मिली।
      सादर स्नेह

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  11. प्रकृति के सौंदर्य वर्णन के साथ कुछ विरह का सा भाव समझ आ रहा ।भाषा की वजह से पूरा समझ नहीं पाई ।
    मूल भाव एक लाइन में यदि हिंदी में दे दिया जाय तो मुझ जैसे अनाड़ी पाठक को ज्यादा आनंद आएगा ।

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    1. सादर नमस्कार दी।
      स्पष्ट तो नहीं लेकिन आपके लिए गीत के कुछ भाव लिखे है।
      मुखड़े की पंक्तियों में-
      पूर्ण तय कल्पना पर आधारित गीत है।
      प्रेमिका का चाँद सितारों से जड़ी ओढ़नी ओढ़ इठलाना पछुआ पवन का लहराना उसे दामण के लहराने जैसा लगता है। हल्की हल्की चाँदनी का बादलों से झाँकना उसे लगता है जैसे उसकी प्रेमिका का मोहक मुखड़ा हो।

      प्रथम अंतरे में-
      मेंहदी रचे हाथ गजरे का शृंगार ओस बूंदो का आँगन में बरसना लगता है ज्यों आँगन के हृदय पर मोतियों की माला हो।यह दृश्य इतना मोहक है की नजर उतरने…।

      दूसरे अंतरे में-
      नायिका उस दृश्य को स्मरण करते हुए कहती है
      मोहक मुखड़ा देख अंबर के हृदय में बिजली सी गरजती है। बरसात की मोटी मोटी बुँदे बेचैनियों को और बढ़ा रही हैं।प्रीत के इस मोहक दृश्य से दिशाए धुंधरा जाती है उलझ पड़ती है अंतर मन से...।

      अंतिम अंतरे में धुंध में झाँकती चाँदनी यों लगती है जैसे चंद्र फूलों की क्यारी महक रही हो और रात उसमें उजला रंग भर रही हो
      चाँद एक कटोरा है जो हाथा से छूट गया, उस कटोरे से प्रीत रंग के तार झर रहे हैं रात हृदय रुपी पत्तों पर मांड़ना मांड रही है नींद त्यागे विभावरी...।

      आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर प्रणाम

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  12. मेरा भी मन अधीर हो गया पूरा भाव ना समझकर
    रचना की लय और शब्दसंयोजन बहुत ही मनमोहक है...प्रकृति की सुन्दरता में अद्भुत व्यंजनाएं काव्य को और भी आकर्षक बना रही हैं।

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    1. आपको सृजन मोहक लगा अत्यंत हर्ष हुआ आदरणीय सुधा दी जी।
      कुछ भाव लिखें है ऊपर।
      बहुत सारा स्नेह

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  13. मेरी भी मन की दशा कुछ ऐसी ही हो रही है,भाव तो समझ सकती हूं पर भावार्थ नहीं।

    फिर भी...रचना में राजस्थानी रंग मन को रंग रहें हैं। सुन्दर सृजन प्रिय अनीता

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    1. आभारी हूँ आदरणीय कामिनी दी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर स्नेह

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  14. वाहहहहहहहहहहहह.. .
    बहुत ही सुंदर और मनमोहक प्रस्तुति है! श
    शब्दों का चयन तो बहुत ही उम्दा है👍

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    1. वैसे आपके ब्लॉग का नाम है मेरा भी यही नाम(मुह बोल नाम - गुड़िया) है पर मैं गूंगी किस्म की बिल्कुल भी नहीं हूँ इसके उल्ट बहुत ही बातूनी किस्म की हूँ! 😄😄😄

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    2. आभारी हूँ प्रिय मनीषा जी।
      अत्यंत हर्ष हुआ आपकी मीठी मीठी बातें पढ़ कर। ऐसा नहीं है कि मैं बोलती नहीं हूँ बस कम बोलती हूँ हस्बैंड आर्मी है ज्यादातर समय अकेले में...। हम सभी को कम बोलने की आदत है। और फिर कभी आपके जैसी बातूनी दोस्त मिली है नहीं।😅

      बहुत बहुत सारा स्नेह आपको हमेशा ऐसे ही हँसते हँसाते रहना।
      खुश रहो

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    3. वाह!
      दोस्त..!
      आपने मुझे दोस्त कहा .. ..!तो दोस्त एक बात बोलूँ आप भी गूंगी किस्म की बिल्कुल भी नहीं हो क्योंकि जरूरी ठोड़ी है कि मुंह से बोल कर जो बात करें वही बातूनी है !देखा जाए तो हम सभी ब्लॉगर बहुत ही बातूनी है!क्योंकि हम सब अपने लेख और रचनाओं के जरिये एक दूसरे से बात ही तो करते हैं! हुए न बातूनी 😄
      आप बहुत ही खुशकिस्मत हैं कि आप एक देश रक्षक की पत्नी हैं!
      आदरणीय सर को मेरी तरफ से सल्यूट 🙏🙏🙏
      और आप को भी 🙏🙏

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    4. बहुत सारा स्नेह प्रिय मनीषा जी।
      हमेशा ऐसे ही हँसते हँसाते रहो।
      खूब लिखो माँ शारदे की कृपया हमेशा आप पर बरसती रहे।
      सादर स्नेह

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  15. आहा ...
    प्राकृति और प्रेम को आंचलिक शब्दों में बाँध कर धरती के करीब कर दिया मन के उमड़ते भावों को ... बेहतरीन कलम का जादू ...

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    1. आभारी हूँ आदरणीय सर आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा।
      सादर

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  16. वाह अनीता, बहुत ही सुन्दर गीत !
    तुमने खड़ी बोली में गीत की व्याख्या कर उसे हम सब तक पहुंचा दिया है.

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर।
      आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा।
      आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर प्रणाम

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