शनिवार, दिसंबर 25

दिल की धरती पर



दिल की धरती पर 

छिटके हैं

एहसास के अनगिनत बीज।

धैर्य ने बाँधी है दीवार 

कर्म की क्यारियों का 

सांसें बनती हैं आवरण।

धड़कनें सींचती हैं 

बारी-बारी से अंकुरित पौध।

स्मृतियों के सहारे

पल्लवित आस की लताएँ

झूलती हैं झूला।

गुच्छों में झाँकता प्रेम

डालियों पर झूमता समर्पण

न जाने क्यों साधे है मौन।

बाग़ में स्वच्छंद डोलती सौरभ

अनायास ही पलकें भिगो

उतर जाती है

दिल की धरती पर

एक नए एहसास के साथ।


@अनीता सैनी 'दीप्ति'


36 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय अनीता दी जी।
      सादर

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  2. दिल की धरती पर
    छिटके हैं
    एहसास के अनगिनत बीज।
    धैर्य ने बाँधी है दीवार
    कर्म की क्यारियों का
    सांसें बनती हैं आवरण।।
    गहन भाव लिए अत्यंत सुन्दर कृति ।

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    उत्तर
    1. आभारी हूँ प्रिय मीना दी जी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

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  3. डालियों पर झूमता समर्पण
    न जाने क्यों साधे है मौन।
    अनुभूतियों की स्याही भावों की कलम और उकरते एहसास,
    पवन के हिण्डौले में झूलता भाव चित्र।
    बहुत सुंदर सृजन।


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    1. आभारी हूँ आदरणीय कुसुम दी जी आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरे।
      सादर स्नेह

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  4. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर रविवार 26 दिसंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय रविंद्र जी सर पांच लिंको पर स्थान देने हेतु।
      सादर

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  5. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(26-12-21) को क्रिसमस-डे"(चर्चा अंक4290)पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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    उत्तर
    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय कामिनी जी चर्चा मंच पर स्थान देने हेतु।
      सादर

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  6. बाग़ में स्वच्छंद डोलती सौरभ
    अनायास ही पलकें भिगो
    उतर जाती है
    दिल की धरती पर
    एक नए एहसास के साथ...हृदयस्पर्शी लेखन प्रिय दीदी।
    कितना कठिन होता होगा मन को बहलाना। शब्दों में उमड़ता भावों का सैलाब,पलकें भिगोता।

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    1. आभारी हूँ प्रिय कविता।
      बहुत बहुत सारा स्नेह।
      सादर

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  7. भावपूर्ण
    दिल को छूने वाले एहसास।
    एक अनछुए पहलू को छूने की कामयाब कोशिश।

    New post - मगर...

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  8. स्मृतियों के सहारे
    पल्लवित आस की लताएँ
    झूलती हैं झूला।
    गुच्छों में झाँकता प्रेम
    डालियों पर झूमता समर्पण
    न जाने क्यों साधे है मौन।
    स्मृतियों आशाओं और दिल में उमड़ते प्रेम का मौन समर्पण....पलकें नम हो पर कर्म में बाधा न डालती भावनाएं...यहीतो है सच्चे प्रेम की पराकाष्ठा.
    गहन चिंतनीय एवं लाजवाब सृजन
    वाह!!!

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सुधा जी।
      सादर स्नेह

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  9. उत्तर
    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय ओंकार जी सर।
      सादर

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  10. वाह अनीता ! भावनाओं का तुमने कैसा सुन्दर जाल बिछाया है !

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    उत्तर
    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय गोपेश जी सर।
      आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरे।
      आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  11. स्मृतियों के सहारे
    पल्लवित आस की लताएँ
    झूलती हैं झूला।
    गुच्छों में झाँकता प्रेम
    डालियों पर झूमता समर्पण
    न जाने क्यों साधे है मौन।
    वाह! बहुत ही खूबसूरत सृजन!
    शब्दों का चयन तो और भी खूबसूरत.. .

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया प्रिय मनीषा जी।
      सादर स्नेह

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  12. वाह!प्रिय अनीता ,क्या बात है !कितना मनमोहन सृजन !वाह!!

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    1. आभारी हूँ प्रिय शुभा दी जी।
      आपका आशीर्वाद यों ही बना रहे।
      सादर

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  13. खूबसूरत पंक्तियाँ।

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  14. भावपूर्ण अभिव्यक्ति।

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  15. बहुत सुन्दर मानवीय संबंधों की ध्वनि प्रकृति के साथ मिलकर अर्थ को गंभीरता प्रदान कर रही है। बधाई

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    1. आभारी हूँ प्रिय कल्पना मनोरमा दी जी आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरे।
      सादर स्नेह

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  16. बहुत ही सुंदर प्रतिबिंबों के माध्यम से सम्बन्धों और प्राकृति को जोड़ने का प्रयास करती है रचना … एहसासों के गहरे दलदल से जूझती रचना … लाजवाब …

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    1. आभारी हूँ सर आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरे।
      सादर

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  17. बहुत सुंदर ढंग से संबंधों को दर्शाया है
    सराहनीय सृजन

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    उत्तर
    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय भारती जी।
      सादर

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  18. यात्रा पर रहने और आज नेटवर्क उपलब्ध होने के कारण मैं आज रचनाओं को देख पा रहा हूँ।
    आपने बहुत सुंदर रूपकों और विम्बों का प्रयोग किया है। साधुबाद!--ब्रजेंद्रनाथ

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    1. आभारी हूँ आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

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