गुरुवार, जुलाई 7

बापू



भाव सरिता बहती आखरा 

मौण रौ माधुर्य बापू।।

बढ़े-घटे परछाई पहरा

दुख छळे सहचर्य बापू।।


हाथ आंगळी पग पीछाणै

सुख रौ जाबक रूखाळो।

सूत कातता उळझ रया जद 

सुळझावै नित निरवाळो।

तिल-तिल जळती दिवला बाती 

च्यानण स्यूं अर्य बापू।।


काळजड़े रै कूंणा फूटै 

अणभूतयां री कूंपळां।

सूरज किरण्या जीवण सींचे 

खारे समंदर दीप्तोपळा 

खरे ज्ञान रो खेजड़लो है 

देवदूत अनुहार्य बापू।।


टेम  खूंटी आभै टांगता 

 इंदर धणुष थळियां उग्या।

मरू माथे छाया रूंख री 

मोती मणसा रा पुग्या।

सगळां री संकळाई ओटै 

मेदिणी रौ धैर्य बापू।।


@अनीता सैनी 'दीप्ति'

शब्दार्थ

छळे/छलना,आंगळी/अंगुली,पीछाणै/पहचाने,जाबक/संपूर्ण; एकदम,रूखाळो/रखवाला,सुळझावै/सुलझाना,निरवाळो/एकांत,अनुहार्य/अनुकरण  करने योग्य,कूंणा/कोना,अणभूतयाँ /अनुभूति,कूंपळा/कोंपल,च्यानण /उजाला,अर्य/(श्रेष्ठ,पूज्य ),दीप्तोपळा/सूर्य कांत मणि,खेजड़लो/खेजड़ी का वृक्ष,टेम/समय,आभै /अंबर,सगळां /सभी,संकळाई/समस्या,ओटै /समाधान करना

सारांश -पिता में छिपे ममता रूपी भावों को दर्शाता यह नवगीत, इसमें नायिका कहती की पिता का स्नेह ऐसे है जैसे शब्दों में भाव हो और मौन में माधुर्य, वह कहती है समय के साथ दिन दोपरा परछाई बढ़ती घटती जैसे सुख के साथी बहुत होते हैं परंतु पिता तो दुख में भी आपने साथ होता है।

अगले अंतरे में नायिका कहती हैं पिता अंगुलियों के स्पर्श मात्र से या पैरों की आहट से पहचान लेता है, वह आपके सुख का बहुत ध्यान रखता है, अगर वह ज़िंदगी की उलझनों में उलझ भी जाता है तब भी किसी को कुछ नहीं कहता अगल एकांत में बैठ उसे सुलझाता रहता है, पिता बाती के जैसे आजीवन तिल-तिल जलता है, इसी पर नायिका ने पिता को उजाले से भी श्रेष्ठ और महान बताया है

अगले अंतरे में नायिका कहती है -हृदय के कोने में यादों की कोंपल फूटती  है, स्मृति में डूबी कहती है जैसे सूरज जग में समंदर रूपी खारे जीवन को सींचता है वैसे ही पिता परिवार में सूर्य कांत मणि के समान है,

वह कहती है पिता शुद्ध ज्ञान का भंडार है, वह देवदूत अनुकरण  करने योग्य है,

वह कहती है- पिता ही है वह जो समय की खूँटी पर अंबर टांग देता है और इंद्र धनुष आँगन में उतार देता है, पिता मरुस्थल के माथे पर छाँव है वह हमारी इच्छाओं का मोती है, सम्पूर्ण परिवार के दुख-दर्द अपने हृदय पर रखकर जीता है तभी नायिका कहती है पिता तो धरती का धैर्य  है।

सभी पिताओं को समर्पित यह नवगीत अगर आप पाठकगण अपने-अपने दृष्टिकोण से पढ़ेंगे तब मुझे बहुत ख़ुशी होगी, हमेशा सारांश संभव नहीं है 🙏

29 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. हार्दिक आभार अनुज बड़ी ख़ुशी हुई आपकी प्रतिक्रिया मिली।
      सादर

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  2. बापू के प्रति आपके भावनिश्छल और सर्वोपरि हैं.

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    1. हृदय से अनेकानेक आभार सर।
      राजस्थान के प्रतिष्ठित साहित्यकार की प्रतिक्रिया, सृजन सार्थक हुआ।
      बहुत से शब्द हिंदी के हैं परंतु क्या करूँ राजस्थानी में मिले ही नहीं।
      प्रयास जारी है 🙏
      सादर नमस्कार

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  3. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (09-07-2022) को चर्चा मंच     "ग़ज़ल लिखने के सलीके"   (चर्चा-अंक 4485)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

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    उत्तर
    1. हृदय से आभार सर मंच पर स्थान देने हेतु।
      सादर

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  4. अनीता, तुमने मुझ से बिना मिले ही कैसे पिताजी के प्रति मेरी भावनाओं को शब्द दे दिए?
    माँ पर न जाने कितने महाकाव्यों की रचना हुई होगी पर पिता के हिस्से में दो-चार दोहे ही आए होंगे.
    तुम्हारा यह मधुर गीत उस कमी को काफ़ी हद तक पूरा करेगा.

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    1. आदरणीय गोपेश जी सर सादर प्रणाम 🙏
      आपके यही शब्द नवगीत को सार्थक करते हैं, अपार हर्ष हुआ आपकी प्रतिक्रिया मिली।
      मैं माँ को भी स्नेह करती हुँ परंतु बापू के प्रति अलग सा एहसास है। देखती हुँ तब लगता है सच पिता बहुत महान होते हैं, हमारे राजस्थान में तो जीवन भर कमाओ और फिर बुढ़ापे में चारपाई घर के बाहर लगा दी जाती। पहले बच्चों के साथ ऐसे नहीं रह पाए फिर वैसे अकेले रहो बस जीवन भर कमाते रहो। जये हो समाज की...
      सादर प्रणाम

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  5. पिता को समर्पित राजस्थानी में अति उत्तम भावाभिव्यक्ति ।एक कहावत के अनुसार -
    "कोस कोस पर बदले पानी, चार कोस पर बदले वाणी" और इसको अनुभव भी किया है ।हिन्दी भाषी क्षेत्रों के लिए कठिन शब्दार्थ भाव स्पष्ट करने में सुगमता देते हैं । जिसके लिए आप बधाई की पात्र हैं ।प्रत्येक रचना का भावार्थ वास्तव में कठिन कार्य है ।

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    1. हार्दिक आभार प्रिय मीना दी गज़ब की बात कही आपने "कोस कोस पर बदले पानी, चार कोस पर बदले वाणी" मैंने भी अपने दादा जी से यह काफ़ी बार सुना था फिर सुनकर बहुत हर्ष हुआ। हृदय से आभार मुझे समझने हेतु। आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा आशीर्वाद बनाए रखें।
      सादर स्नेह

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  6. मैंने आपका यह हृदयस्पर्शी गीत भी पढ़ा और गोपेश जी की टिप्पणी पर आपका उत्तर भी। दोनों ही मेरे मन की गहराई में उतर गए हैं।

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    1. आपकी प्रतिक्रिया से लगा ज्यों सृजन सार्थक हुआ। अनेकानेक आभार सर। यह सच्चाई है सर अगर कोई बदलना भी चाहे तो समाज के रखावाले बदलने नहीं देते जो सीधा सरल व्यक्ति होता है उसका जीवन कष्ट से भर जाता है और फिर अगर कोई न समझने वाला मिल गया तो सोने पै सुहागा। औरतें तो फिर भी अपना....।
      हृदय से आभार सर

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  7. पिता पर बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण गीत रचा है आपने राजस्थानी भाषा में...सही कहा भावार्थ कठिन कार्य है भाषा बदलने पर उन्हीं भावों को शब्दार्थ के साथ बदलना क ई बार बहुत मुश्किल लगता है...फिर भी आपने किया बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं आपको।

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    1. हृदय से आभार प्रिय सुधा दी जी मनोबल बढ़ाती सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु। सच कहूँ तो मैं स्वयं अपनी रचना के भावार्थ के साथ न्याय नहीं कर पा रही हूँ। प्रत्येक पंक्ति को काट छांट कर प्रस्तुत करने पर बड़ी तकलीफ़ होती है लगता है ज्यों कोई बड़ा गुनाह कर दिया हो, फिर भी कुछ विचार करती हुँ। बेहतर करने का...।
      सादर स्नेह

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  8. बेहतरीन लगी यह ,पढ़ने में अच्छी लगी

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  9. टेम खूंटी आभै टांगता
    इंदर धणुष थळियां उग्या।
    मरू माथे छाया रूंख री
    मोती मणसा रा पुग्या।
    सगळां री संकळाई ओटै
    मेदिणी रौ धैर्य बापू।।
    पिता ही है जो समय की खूंटी पर अम्बर टांग देता है.
    आप ने रचना के भावों को बताकर समझना सरल बना दिया. साधुवाद!

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    1. हृदय से आभार सर सृजन सार्थक हुआ।
      सादर

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  10. धन्यवाद आपने भावार्थ भी दिया | वाह बहुत सुंदर रचना !!

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  11. पिताजी को समर्पित यह नवगीत हर पुत्री पुत्र के लिए जैसे स्वयं के भाव है।
    राजस्थानी भाषा में लिखा ये नवगीत हृदय के उदगार ही नहीं हृदय को अंदर तक छू रहा है।
    अप्रतिम भाव अप्रतिम अनुवाद और भावार्थ।
    कभी कभी कितना कठिन होता है अपने ही भावों को प्रथम तो शब्दों में ढाल लेते हैं पर भावार्थ करने में स्वयं भी अक्षम होती है कलम ये दिल के भाव बस एक बार ही निकलते हैं, भावार्थ से परे।
    संवेदनाओं से ओतप्रोत।

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  12. लेखन उस वक़्त सफल लगने लगता है जब भाव एक से लगने लगते हैं। आप सभी के भावों में समाहित मेरे भाव सच सृजन सार्थक हुआ।
    आप और आदरणीय गोपेश सर की प्रतिक्रिया में कहना कि भाव अपने से लगे, उसी समय हृदय तृप्त हो गया। भावार्थ में भावों को स्पष्ट करना बड़ी जटिल प्रक्रिया है स्वयं लिखने वाले के लिए तो बहुत ही , एक लघुकथा एक उपन्यास होता है।
    हृदय से अनेकानेक आभार।
    आशीर्वाद बनाए रखें।
    सादर स्नेह

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  13. अपनी भाषा में ईतणी चोखी कविता 🥰🥰🙏🏼 पापा पेळी बार पढी

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    1. आपकी ख़ुशी को देख हृदय भावविभोर हो गया। पहचान नहीं पाई! अगर पहचान लेती हो ख़ुशी सातवे आसमान को छूती।
      हृदय से अनेकानेक आभार।
      सादर स्नेह

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  14. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 24 जुलाई 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  15. पिता शुद्ध ज्ञान का भंडार है, वह देवदूत अनुकरण करने योग्य है ।
    पिता के ऊपर, भावार्थ सहित लिखी गई ये रचना दिल को छू गई । बहुत सुंदर ।

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  16. अनिता, पिता पर बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण गीत की रचना की है तुमने। सच में पिता को उन के हिस्से का मान मिल ही नही पाता।

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