गुरुवार, मई 4

मैं का अंकुर

 'इसलिए' 'किसलिए' मिलकर
 रिश्तों को दफ़नाने के लिए
जब गहरी खाई खोदने लगे 
'आप' से 'तुम' और 'तू' पर
ज़बान का लहजा अटक जाए 
'तू'-'तू' के इस खेल में
'मैं' के बीज का अंकुर फूटने लगे 
भावों की नदी अविरल 
दिन-रात उसे सींचने लगे  
तब तुम थोड़ा-सा
लाओत्से को पढ़ लेना।

@अनीता सैनी 'दीप्ति'

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर शुक्रवार 05 मई 2023 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. सुंदर पंक्तियाँ।

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  3. मैं' के बीज का अंकुर फूटने लगे
    बहुत सुन्दर ।

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  4. बहुत ही सुन्दर रचना सखी

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  5. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा मंगलवार (16-05-2023) को   "काहे का अभिमान करें"   (चर्चा-अंक 4663)   पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  6. बहुत सुंदर पंक्तियां 👌

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