शनिवार, अप्रैल 6

उदासियाँ

उदासियाँ / अनीता सैनी 

५अप्रेल२०२४

….

मरुस्थल से कहो कि वह 

किसके फ़िराक़ में है?

आज-कल बुझा-बुझा-सा रहता है?

 जलाती हैं साँसें 

भटकते भावों से उड़ती धूल 

धूसर रंगों ने ढक लिया है अंबर को 

आँधीयाँ उठने लगीं हैं 

 सूखी नहीं हैं नदियाँ 

वे सागर से मिलने गईं हैं 

धरती के आँचल में

 पानी का अंबार है कहो कुछ पल 

प्रतीक्षा में ठहरे 

बात कमाने की हुई थी 

क्या कमाना है?

कब तय हुआ था?

उदासियों के भी खिलते हैं वसंत 

तुम गहरे में उतरे नहीं, वे तैरना भूल गईं।

                                                              

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 07 अप्रैल 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  2. जलाती हैं साँसें

    भटकते भावों से उड़ती धूल

    धूसर रंगों ने ढक लिया है अंबर को


    लाजबाब सृजन

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  3. वाह! प्रिय अनीता ,बेहतरीन सृजन..

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  4. उदासियों के भी खिलते हैं वसंत

    तुम गहरे में उतरे नहीं, वे तैरना भूल गईं।


    बहुत गहराई इन शब्दों में
    बेहतरीन रचना🙏

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  5. बहुत ही सुन्दर रचना।

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