गूँगी गुड़िया
अनीता सैनी
शनिवार, जनवरी 28
बोधि वृक्ष
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नर्क की दीवार खंडहर एकदम खंडहर हो चुकी है हवा के हल्के स्पर्श से वहाँ की मिट्टी काँप जाती है कोई चरवाह नहीं गुजरता उधर से और न ही पक्षी उस...
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बुधवार, जनवरी 18
मैं और मेरी माँ
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माँ के पास शब्दों का टोटा हमेशा से ही रहा है वह कर्म को मानती है कहती है- ”कर्मों से व्यक्ति की पहचान होती है शब्दों का क्या कोई भी दोहरा ...
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शनिवार, जनवरी 7
ग्रामीण स्त्रियाँ
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कोहरे की चादर में लिपटी सांसें उठने का हक नहीं है इन्हें ! जकड़न सहती ज़िंदगी से जूझती ज़िंदा हैं टूटने से डरतीं वही कहती हैं जो सदियाँ कहती ...
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सोमवार, दिसंबर 26
'एहसास के गुँचे' एवं 'टोह' का लोकार्पण
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शब्दरंग साहित्य एवं कला संस्थान बीकानेर में रविवार को महाराजा नरेंद्र सिंह ऑडिटोरियम में काव्य संग्रह 'एहसास के गुँचे' और...
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शनिवार, दिसंबर 17
बटुआ
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एहसास भर से स्मृतियाँ बोल पड़ती हैं कहतीं हैं- तुम सँभालकर रखना इसे अकाल के उन दिनों में भी खनक थी इसमें! चारों ओर सूखा ही सूखा पसरा पड़ा था ...
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बुधवार, नवंबर 30
उसका जीवन
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उसका जीवन देखा? यह जीवन भी कोई जीवन है व्यर्थ है… एक दम व्यर्थ! उसे मर जाना चाहिए हाँ! मर ही जाना चाहिए आख़िर बोझ है धरती का हाँ!बोझ ही तो ह...
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बुधवार, नवंबर 9
स्त्री भाषा
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परग्रही की भांति धरती पर नहीं समझी जाती स्त्री की भाषा भविष्य की संभावनाओं से परे किलकारी की गूँज के साथ ही बिखर जाते हैं उसके पिता के स...
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शनिवार, अक्टूबर 29
मेरी दहलीज़ पर
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भोर का बालपन घुटनों के बल चलकर आया था उस रोज़ मेरी दहलीज़ पर गोखों से झाँकतीं रश्मियाँ ममता की फूटती कोंपलें उसकने लगी थीं मेरी हथेली पर बदलाव...
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बुधवार, अक्टूबर 26
काव्य-संग्रह 'टोह' के अवतरण दिवस पर
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मेरी मानस पुत्री के जन्म पर मेरी माँ उतनी ही ख़ुश है जितनी पहली बार वह नानी बनने पर थी। क़लम के स्पर्श मात्र से झरता है प्रेम अब हम दोनों के ब...
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