रविवार, मार्च 22

गूँथे तारिका नित सुंदर स्वप्न


गूँथे तारिका नित सुंदर स्वप्न, 
प्रीत अवनी पर है अवदात ।
कज्जल कुँज में झूलता जीवन,  
समय सागर की है  सौगात।। 

 लहराती है नभ में पहन दुकूल ,
शीतल बयार संग प्रीत पली ।
उमड़ी धरा पर सुधी मानव की ,
खिला नव-अँकुर धरणी चली ।

छिपे तम में  मन के सुंदर भाव 
चाहता है एकाकी बरसात ।
गूँथे तारिका नित सुंदर स्वप्न, 
प्रीत अवनी पर है अवदात ।

करुणामयी  अनुराग हृदय भरा ,
पूनम  चाँदनी मधुर पराग झरा ।
अनंत अंबर खोजे चित्त चैन, 
झरते तारे का प्रतिबिंब ठहरा ।

समय सागर पर ठिठुरी छाया, 
जीवन प्रलय है झँझावत ।
गूँथे तारिका नित सुंदर स्वप्न, 
प्रीत अवनी पर है अवदात ।

© अनीता सैनी 

10 टिप्‍पणियां:

  1. शुद्ध हिंदी की बहुत सुंदर कविता।

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    1. सादर आभार आदरणीय सर उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
      सादर

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (23-03-2020) को    "घोर संक्रमित काल"   ( चर्चा अंक -3649)      पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    आप अपने घर में रहें। शासन के निर्देशों का पालन करें।हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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    1. सादर आभार आदरणीय चर्चामंच पर मेरी रचना को स्थान देने हेतु.

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  3. उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय सर उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
      सादर

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  4. गीत की लय पर सुंदर छायावादी लेखन ।
    भाव शब्द दोनों बहुत सुंदर।

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    1. सादर आभार आदरणीया दीदी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
      सादर

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  5. बेहतरीन रचना बहना

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