शनिवार, मार्च 21

दुर्लभ साँसें



धड़कन है जो धड़कती रहती है,
संग  साँसें भी चलतीं रहतीं हैं, 
थामें दिल का हाथ, हाथों में,
आँखें भी हँसती-रोतीं रहती हैं। 

सृष्टि में बिखरीं हैं अनंत अविरल साँसें,
धरती-जल-अंबर के आनन पर देखो,
कहीं लहरायी बल्लरियों-सी कहीं, 
अनुभूति में उलझी टूटे तारों-सी साँसें। 

वेंटिलेटर पर संघर्ष करतीं देखीं, 
जीवनदायिनी गणित साँसें, 
जीवन का अर्थ बतातीं समझाती, 
संसार की असारता का करतीं हैं,
बखान दुर्लभ साँसें। 

©अनीता सैनी 

16 टिप्‍पणियां:

  1. साँसों का सही चित्रण।
    सुंदर भाव पूर्ण सृजन।
    सृष्टि में बिखरीं हैं अनंत अविरल साँसें,सटीक ।
    बहुत सुंदर रचना साँस तक उतरती।

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    1. सादर आभार आदरणीया दीदी सुंदर समीक्षा हेतु.
      सादर

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  2. बहुत सुंदर शब्द चित्रण सखी।सुंदर और सार्थक रचना।

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    1. सादर आभार बहना सुंदर समीक्षा हेतु.
      सादर

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  3. वाह!प्रिय सखी ,बहुत सुंदर !

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    1. सादर आभार आदरणीया दीदी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
      सादर

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  4. वेंटिलेटर पर संघर्ष करतीं देखीं,
    जीवनदायिनी गणित साँसें,

    बहुत खूब... ,सुंदर अभिव्यक्ति अनीता जी ,सादर स्नेह

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    1. सादर आभार आदरणीया दीदी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
      सादर

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  5. वेंटिलेटर पर संघर्ष करतीं देखीं,
    जीवनदायिनी गणित साँसें,
    जीवन का अर्थ बतातीं समझाती,
    संसार की असारता का करतीं हैं,
    बखान दुर्लभ साँसें।
    सही कहा संसार असार ही तो होता है अंतिम साँसों के साथ....
    बहुत सुन्दर सार्थक सृजन
    वाह!!!

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    1. सादर आभार आदरणीया सुधा दीदी सुंदर उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
      सादर

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