हिया पाट थे खोलो ढोला
झाँके भोर झरोखा से।
खेचर करलव सो धड़के है
गीत अजन्मो गोखा से ।।
उठे बादळी गहरी घुमड़े
सोय आखरा भाव भरे।
मनड़े भींत्या डंकों बाजे
छवि साहेबा री उभरे।
बोल अजन्मे रा है फूटे
ढुळे ख्याल ज्यों सोखा से।।
चूळू भर-भर सौरभ छिड़कूँ
लय मतवाळी थिरक रही।
सूर तार बाँधू ताळा रा
अभी व्यंजना मिथक रही।
फूल रोहिड़ा रा है बिखरा
खुड़के झँझरी नोखो से।।
गोदी माही भाव सुलाऊं
जीवण हिंडोला हिंडे।
झपक्या सागे लुढ़क सुपणो
हिम बूँद कपोला खींडे।
मुळक्य सिराणों ढळत पहरा
पीर पूछ ली धोखा से।।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
शब्द -अर्थ
किंवाड़ा-दरवाजा
खेचर-पक्षी
बादळी-बादल
गोखा-खिड़की
आखरा-अक्षर
भींत्या-भींत ,दीवार
ख्याल -भाव
सोखा-चतुराई
चूळू-अंजुरी
मतवाळी-मतवाली
ताळा-ताल
खुड़के-आवाज़
नोखो-विचित्र
झपक्या-झपकी
मुळक्य-हँसना
ढळते-लुढ़कना
सिराणों -तकिया
गोदी माही भाव सुलाऊं
जवाब देंहटाएंजीवण हिंडे हिंडोला।
झपक्या सागे लुढ़क सुपणो
ओस बूँद बण ढळे कपोला।
मुळक्य सिराणों ढळत पहरा
पीर पूछ ली धोखा से।। बेहद खूबसूरत सृजन सखी।
हार्दिक आभार सखी।
हटाएंसादर
उठे बादळी गहरी घुमड़े
जवाब देंहटाएंसोय आखरा भाव भरे।
मनड़े भींत्या डंकों बाजे
छवि साहेबा री उभरे।
बोल अजन्मे रा है फूटे
ढुळे ख्याल ज्यों सोखा से।।
माधुर्य भावों से सुसज्जित खूबसूरत कृति ।
दिल से आभार आदरणीय मीना दी जी आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा।
हटाएंसादर स्नेह
राजस्थानी साहित्य पढने को कहाँ मिलता है
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन.
हृदय से आभार आपका।
हटाएंसादर
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर रविवार 30 जनवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
बहुत बहुत शुक्रिया सर पांच लिंको पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (30-1-22) को "भावनाएँ मेरी अब प्रवासी हुईं" (चर्चा अंक 4326)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
--
कामिनी सिन्हा
आभारी हूँ आदरणीय कामिनी जी मंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
खिड़की से झाँक कर इतना सुंदर गीत रच दिया है । बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीया संगीता दी जी आपकी प्रतिक्रिया मिली सृजन सार्थक हुआ।
हटाएंसादर प्रणाम
बहुत बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीय सर।
हटाएंसादर
इस अजन्मे गीत के भाव में डूबते-उतराते हुए सुन्दर मुस्कान खिल गई है। धोखे से पीर को पूछना... बहुत ही सुन्दर पल होगा।
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार दी।
हटाएंआपकी प्रतिक्रिया से मेरे भी होंठो पर मुस्कान खिल गई कहाँ पकड़ा है आपने मुझे।
सादर स्नेह
बहुत हो सुंदर भावो से सज्जित मधुर गीत ।बहुत शुभाकामनाएं 💐💐
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार आदरणीया जिज्ञासा दी जी।
हटाएंसादर
वाह!प्रिय अनीता ,खूबसूरत भावों से सजी रचना ।
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार प्रिय शुभा दी जी।
हटाएंआपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा।
आशीर्वाद बनाए रखें।
सादर
चूळू भर-भर सौरभ छिड़कूँ
जवाब देंहटाएंलय मतवाळी थिरक रही।
सूर तार बाँधू ताळा रा
अभी व्यंजना मिथक रही
वाह ! प्रिय अनिता, बहुत सुंदर गीत। मातृभाषा में लिखा गीत हृदय छू गया।
फिर भी अच्छा है कि आपने शब्दों के अर्थ दे दिए, रचना का सौंदर्य समझने में आसानी हुई।
हार्दिक आभार आदरणीय मीना दी जी सृजन सार्थक हुआ।
हटाएंसादर स्नेह
विरह श्रृंगार का अनुपम सृजन
जवाब देंहटाएंसुकोमल भाव कोमल कलियों से।
अप्रतिम
(पिया जो पास नहीं है से अभ्यर्थना ।)
हे पिया हृदय के पट खोलो
झरोखों से भोर झांकने लगी
पाखियों के कलरव जैसे खिड़कियों से
एक अजन्मा गीत धड़क रहा है।
(मन के भाव)
गहरे बादल घुमड़ रहे हैं
सोते हुए शब्द भावों का रूप ले रहे हैं।
हृदय की दिवारों पर डंका बज रहा है
और प्रिय की छवि उभर रही है।
अजन्मे के बोल जैसे फूट रहे हैं
और निपुणता से भाव बह रहे हैं।
(क्या है अजन्मे के बोलों में)
अँजुरी भर-भर के सौरभ बिखर रही है
लय स्वछंद होकर थिरक रही है
सूर के तार ताल से समायोजित हैं
अभिव्यंजना और कल्पना से भरपूर।
वन-फूल बिखर रहे हैं अनूठे से झांझरी स्वर झनक रहे हैं।
(पर अब पिया के न आने की निराशा)
जीवन हिण्डोले में झूल रहे भावों को
गोदी में थपकी दे के सुला दूँ,
वो झपकी के साथ सपने जैसे लुढ़क रहे हैं,
और गालों पर शीतल जल बहने लगता है ,
हँस कर सिरहाना धोखे से सारा दर्द पूछ लेता है।
आँसू सारी कथा कह देते हैं भीगते तकिये को।
आपके द्वारा सृजन का हिंदी भावार्थ सच दी सराहनीय। आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा स्नेह आशीर्वाद बनाए रखें।
हटाएंसादर
बहुत सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका आदरणीय भारती जी।
हटाएंसादर
आंचलिक भाव अभिव्यक्ति में आपकी मास्टरी हो गई है ...
जवाब देंहटाएंसहज अभिव्यक्ति मन को छूती है ...
हार्दिक आभार आदरणीय नासवा जी सर आपकी प्रतिक्रिया हमेशा ही मेरा मनोबल बढ़ाती है।
हटाएंसादर
वाह अनीता !
जवाब देंहटाएंतुम्हारे भीतर तो मीरा की आत्मा प्रविष्ट हो गयी है.
आदरणीय सर क्या कहूँ समझ ही नहीं आ रहा है। आज तो आपने कुछ ज्यादा ही तारीफ़ कर दी।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखें।
हृदय से आभार आपका।
सादर प्रणाम।
बह्त भावपूर्ण गीत प्रवाहित हुआ है आपकी लेखनी से। आरंभ किया है - 'हिया पाट थे खोलो ढोला' से जबकि अंत किया है 'पीर पूछ ली धोखा से'। आह! क्या कहने! अनवरत लेखन आपके सृजन को मांजता जा रहा है।
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार आदरणीय माथुर जी सर आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा।
हटाएंसादर