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शनिवार, जनवरी 19

मानवता

                                 

      अनाज के कुछ दाने पक्षियों के हिस्से  में जाने लगे,
       अपने हिस्से की एक रोटी लोग गाय को खिलाने लगे | 

    प्यास  से अतृप्त पेड़, लोग पानी  पिलाने लगे  ,
     कुछ ने बँधाया ढाढ़स,एक रेला अस्पताल ले जाने लगा |

     उलझ  गया वो  माँझे  में,पँख उसके फड़फड़ाने लगे  ,
     न करेंगे अब पतंगबाज़ी,मनुष्य आजीवन यही प्रण निभाने लगा |

      सींच रहे मोहब्बत के फूल,धरा भी अब मुस्कुराने लगी,
फूट रहे दिलों में प्रेम के अंकुर,मनुष्य भी अब खिलखिलाने लगा |

पत्थर के ज़ख़्म सहलाने लगें, इंसान-इंसान को गले लगाने लगा 
दिया जो ज़ख़्म अंजाने में,इंसानियत से मोहब्बत  निभाने  लगा, 

आँख का पानी अब मुस्कुराने लगा,वो ख़ुशी के बहाने तलाशने  लगा, 
ज़ख़्म दिल के ज़माना सहलाने लगा,हर कोई चिकित्सक नज़र आने लगा, 


      
                                            -अनीता 

43 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही बेहतरीन रचना सखी

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  2. सस्नेह आभार सखी
    सादर

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  3. सुंदर रचना....गंभीरता समेटे। शुभकामनाएं ।

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन रचना सखी

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    उत्तर
    1. सस्नेह आभार आदरणीया अभिलाषा जी
      सादर

      हटाएं
  5. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (20-01-2019) को "अजब गजब मान्यताएंँ" (चर्चा अंक-3222) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    उत्तरायणी-लोहड़ी की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  6. उत्तर
    1. सह्रदय आभार आदरणीय उत्साहवर्धन टिप्णी हेतु
      सादर
      आभार

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  7. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  8. आदरणीय रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी सह्रदय आभार आप का चर्चा में स्थान देने हेतु
    सादर

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  9. सह्रदय आभार आदरणीय
    सादर

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  10. सींच रहें मोहब्बत के फूल, धरा भी अब मुस्कुराने लगी....वाह क्‍या खूब लिखा है

    जवाब देंहटाएं
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    1. जी नमस्ते,
      आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
      २१ जनवरी २०१९ के लिए साझा की गयी है
      पांच लिंकों का आनंद पर...
      आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

      हटाएं
    2. सह्रदय आभार आदरणीय आप का
      सादर

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  11. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  12. आदरणीया श्वेता जी सह्रदय आभार पांच लिंकों का आनंद में स्थान देने के लिए
    सादर

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  13. मानवीय संवेदनाओं को समर्पित सुन्दर रचना।

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  14. आदरणीय राकेश जी सह्रदय आभार आप का उत्साहवर्धन टिप्णी के लिए,
    उम्मीद है आप योहीं मार्गदर्शन करते रहेगें, अच्छा लगा आप ब्लॉग पर पधारे आप का तहे दिल से स्वागत है
    सादर
    आभार

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  15. इतनी संवेदना इस धरा को ही स्वर्ग बना देगी.काश,ऐसा हो !

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    1. आदरणीय प्रतिभा सक्सेना जी शुभ प्रभात
      आदरणीय आप का ब्लॉग पर तहे दिल से स्वागत है अहो भाग्य हमारे आप ब्लॉग पर पधारे, "इतनी संवेदना इस धरा को ही स्वर्ग बना देगी.काश,ऐसा हो"आप ने बहुत सही कहा आदरणीय मैं ने अपने जीवन काल में देखा है ऐसी संवेदना सभी के ह्रदय में पनपती है. ..पर न जाने अहम की आड़ में क्यों छुपा लेते. . ..हर कोई किसी को बदलना चाहता पर स्वयं का आंकलन उसे गवारा नहीं... उम्मीद धरा पर ऐसा दिन भी आए
      आप का सह्रदय आभार
      सादर

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  16. अनीता जी
    आपकी सकारात्मक सोच से बेहद प्रभावित हुए हैं हम.
    आपका नजरिया खुदा केरे सबके पास हो.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय रोहिताश जी शुभ प्रभात
      आप का ब्लॉग पर तहे दिल से स्वागत है आदरणीय आप के ब्लॉग पर मेरे कमेंट एक्सेप्ट नहीं हो रहे आप की रचनाओं से काफ़ी प्रभावित हूँ
      सस्नेह आभार आप का आप ब्लॉग पर पधारे
      सादर
      आभार

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  17. वाह आपकी ये शुभ्र भावनाऐं अवश्य फलीभूत हो सखी!
    फिर परिवार समाज राष्ट्र और विश्व हर और खुशहाली होगी ।
    आमीन!

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    1. शुभ प्रभात आदरणीया कुसुम जी
      सखी एक दिन ऐसा आएगा, हर दमाम में खुशियाँ होंगी, धरा भी मुस्कुराये गी..
      सादर
      आभार

      हटाएं
  18. अनिता दी,आपकी यह रचना बता रहीं हैं कि आज इंसान थोड़ा थोड़ा ही सही सुधर रहा हैं। बस उस तरफ नजर डालने की जरूरत हैं। यदि हम सकारात्मक पहलू देखेंगे तो वैसा ही दिखाई देगा। सुंदर प्रस्तूति।

    जवाब देंहटाएं
  19. प्रिय सखी ज्योति शुभ प्रभात
    सस्नेह आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  20. पत्थर के ज़ख्म सहलाने लगें, इंसान - इंसान को गले लगाने लगा
    दिया जो जख़्म अंजाने में ,इंसानियत से मोहब्बत निभाने लगे,
    काश ऐसा हो...सभी यही कहते हैं फिर करते क्यों नहीं... क्योंकि दूसरा नहीं करता....है न...बस सब यही सोचकर पीछे हो जाते हैं....सकारात्मक भाव जगाती आशा की किरण सी बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति...।

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    उत्तर
    1. आदरणीया सुधा जी,
      सखी आप का सह्रदय आभार इतनी सुन्दर टिप्णी के लिए, सही कहा आप ने पहली पहल कोई नहीं करता.. .पर हम करेंगे ...जीते जी कुछ न कर सके बस एक कोशिस करेंगे ..
      आप का बहुत सा स्नेह
      सादर

      हटाएं
  21. आँख का पानी अब मुस्कुराने लगा,वो ख़ुशी के बहाने तलाशने लगा,
    ज़ख्म दिल के जमाना सहलाने लगा,हर कोई चिकित्सक नज़र आने लगा!!!!!!!!

    क्या बात है प्रिय अनिता जी ! अद्भुत सृजन और अप्रितम भाव !
    मानवीयता के ये संस्कार हमारी सनातन संस्कृति की अक्षुण पहचान हैं | यदि ये हर इन्सान में व्याप्त रहें तो तो देश और समाज से पीड़ा का नामोनिशान मिट जाएँ | पानी ,हवा , पत्थर . पशु -पक्षी वनस्पति सबको करुणा से देखने की अनमोल सीख देती है हमारी संस्कृति | हार्दिक शुभकामनायें और बधाई मानवीयता के चरम बिन्दुओं को छुती रचना के लिए | सस्नेह --

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  22. प्रिय सखी स्नेह आभार, आप की टिप्णी हमेशा सब से अलग होती है हर शब्द
    अप्रतिम, अपने आप में स्वतंत्र अस्तित्व स्थापित करता... मेरे शब्द बहुत कम होते है.... वही आप का ढेर सारा स्नेह ...बहुत अच्छी लगी आप की अदा... आप को बहुत सा स्नेह |
    आभार
    सादर

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  23. आपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 16 मार्च 2019 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    उत्तर
    1. प्रणाम आदरणीय दी जी
      तहे दिल से आभार "मुखरित मौन में" मुझे स्थान देने लिए
      सादर नमन

      हटाएं
  24. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (15-03-2019) को दोहे "होता है अनुमान" (चर्चा अंक-3275) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  25. सहृदय आभार आदरणीय मुझे चर्चा में स्थान देने के लिए
    सादर नमन

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