कृषि प्रधान
कहे जाने वाले भारत देश में
जब किसानों का
निवाला छीना जाता है
बेहतर है
इन्हें मर जाना चाहिए।
कुछ विचार करते हैं
मिल-बैठकर, समर्थन चाहिए!
अगर ये ऐसे नहीं मरते हैं
इन्हें मिलकर मारते हैं
ठंड को कह तुड़वा दे हड्डी या
कोरोना को कहे सीने पर बैठ जाए!
या फिर मूक-बधिर बन
टी.वी. पर आँखें गड़ातें हैं
नेताओं की रैली पर
गुलाब के फूल बरसाते हैं
खेतिहर पर ठंडा पानी डाल
तमाशा देखते हैं।
चलिए !
चुपके से एक क़ानून बनाते हैं
कुछ झूठ
कुछ सच मिलकर फैलाते हैं
नासमझ को नादानी में डुबोते हैं।
कहो तो मूर्खता को
समझदारी के पैर लगाते हैं
फिर भी न मरे उन्हें
राजनीति की कसौटी पर कसते हैं
चलो ! कुछ और न सही
ग़रीबी की रस्सी बना गला घोंटते हैं।
बढिया है। सार्थक रचना के लिए आपको बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर ।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (29-11-2020) को "असम्भव कुछ भी नहीं" (चर्चा अंक-3900) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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सादर आभार आदरणीय सर चर्चा मंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंज़ुल्म करने वाला नाहक ही मगरूर होता है,
जवाब देंहटाएंरौंदने वाला कभी ख़ुद भी चूर होता है.
आभारी हूँ सर मनोबल बढ़ाने हेतु।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
किसानों की व्यथा का मर्मस्पर्शी शब्दचित्र । धरती पुत्र की समस्या का समाधान शीघ्रातिशीघ्र हो यहीं कामना है ।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय दी प्रतिक्रिया मिली सृजन सार्थक हुआ।स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
हटाएंसादर
प्रिय ,अनीता ,किसानों की हालत का बहुत ही हृदयस्पर्शी चित्रण किया है आपनेंं ।
जवाब देंहटाएंदिल से आभार प्रिय दी आपकी प्रतिक्रिया मिली अत्यंत हर्ष हुआ।
हटाएंसादर
समसामायिक बेहद ज़रूरी रचना के लिए आपको बधाई एवं शुभकामनाएं प्रिय अनीता जी 🙏
जवाब देंहटाएंसस्नेह,
डॉ. वर्षा सिंह
दिल से आभार आदरणीय दी सृजन सार्थक हुआ।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखे।
बहुत ही सटीक लिखा ...
जवाब देंहटाएंदिल से आभार आदरणीय दी मनोबल बढ़ाने हेतु।
हटाएंसादर
प्रिय अनिता, किसानों की दशा और हुक्मरानों की मगरूरी का सार्थक चित्रण करती व्यंग्य रचना के लिए साधुवाद !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा है आपने।
दिल से आभार आदरणीय मीना दी आपकी प्रतिक्रिया मिली सृजन सार्थक हुआ।मर्म स्पष्ट करती प्रतिक्रिया हेतु एक बार फिर दिल से आभार।
हटाएंबहुत ही कालजयी सामयिक रचना - - किसानों के समर्थन में उठती हुई अर्थपूर्ण आवाज़, - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार आदरणीय सर सृजन सार्थक हुआ।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
विचारोत्तेजक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर।
हटाएंचलिए !
जवाब देंहटाएंचुपके से एक क़ानून बनाते हैं
- ऐसा कहना उचित न होगा। आखिर संसद की गरिमा का ख्याल हम न रखें तो कौन रखेगा।
धृष्टता हेतु क्षमाप्रार्थी हूँ । पर यह सच है।
किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक 2020।
हटाएंकिसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक।
आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक।
ये क़ानून बन चुके है और कोरोना काल में ही बने है किसी को भनक तक नहीं लगी। इसमें किसानों को क्या रियायत मिली है आप बताइए और मुझे भी समझाइए। फिर में एक और रचना लिखूँगी।अपने किसान भाइयों को समझा सकूँ।
सादर
अनीता, ख़ुद सरकार मान रही है कि इस बार कृषि-उत्पाद का अब तक आधा भाग भी नहीं बिका है.
हटाएंआज तक किसी भी सरकार ने किसानों के हित के लिए इमानदारी से काम नहीं किया है. सभी कृषि-सुधार हाथी के ऊपरी दांतों की तरह से सिर्फ़ दिखावे के हैं.
हम-तुम सरकार की सदाशयता पर अगर संदेह करेंगे तो उसकी तरफ़ से बोलने वाले हज़ारों उठ खड़े होंगे.
मेरी एक कविता है -
सच की राह चला, वो जड़ से साफ़ हो गया,
बकरे की बलि चढ़ी, भेड़िया माफ़ हो गया,
जो क़ातिल को पकड़े, सूली पर चढ़ जाए,
यही मुल्क के हाकिम का, इंसाफ़ हो गया.
तो फिर अनीत जी, अपनी इस गुस्ताखी के लिए सूली पर चढ़ने को तैयार रहो.
आपने सही कहा आदरणीय सर मुझे सूली पर चढ़ना पड़ेगा।
हटाएंशब्दों की महत्ता तो कोई भारत के नेताओं से सीखे।
मुझे बहुत ख़ुशी हुई कि मेरे शब्दों को इतने बड़े पैमाने पर परखा जाता है। मेरा सौभाग्य कि आपके सृजन की कुछ पंक्तियाँ आपने यहाँ रखीं।आपके स्पष्टवादी विचारों को मेरा प्रणाम।
काश!लोग स्वयं से ऊपर उठना सीखें।
सादर
विचारोत्तेजक रचना !!!
जवाब देंहटाएंसाधुवाद !!!
मेरे ब्लाॅग पर आपका स्वागत है -
https://samkalinkathayatra.blogspot.com/2020/12/blog-post.html
सादर आभार आदरणीय दी मनोबल बढ़ाने हेतु।
हटाएंPlease READ IT....& Rethink over it...I request to Give a Deep Thought....
जवाब देंहटाएं```��In April 2013, Punjab government passed the Punjab Contract Farming Act to provide a legal framework to contract farming. The Punjab Act did not have a provision mandating that sale cannot be below the MSP. 14 states already allowed contract farming before Farms Bills. Then why are Punjab farmers protesting now?
��The problem is not MSP its the Inter state purchase and sales that can now be made bypassing Mandis...
That's what changed.And MSPs only cover few produce. Even Milk is not under MSP, neither are fruits and vegetables.
��This farmers agitation is manipulated by the "Adhatis ( Money lenders)" who will stand to lose Rs 2000 crore per year during wheat & paddy procurement season. Centre's FarmLaws have rendered them irrelevant as farmers are free from the clutches. Biggies in Punjab are rattled.
��Food Corporation of India (FCI) buys wheat & paddy worth Rs 80000 crores from Punjab alone. Rs 6500 crore of tax payers' money goes to Mandis (APMCs) & who controls these Mandis? Concern of the 6000 Adhatis of Punjab, is to earn this much of money without doing any farming.
Here is the statistics why Punjab is rattled.
जवाब देंहटाएं➡️Agriculture reforms
��Wheat procured by GOI for 2019-20 Rabi Marketing Season : 129.12 Lakh Metric Ton
��Middleman commission per quintal (100 kg) - Rs 46.
�� Potential commission (if entire of above Qty is procured through mandis) - Rs 590+ Crore! (in one season)
��BTW, the commission as per APMC Act is 2.5% of the MSP but the GOI has been giving a flat rate of Rs 46 per 100 Kg.
��Capt Amrinder sahab was batting for Arthiyas or commission agents even in July 2020 and asking for 2.5% commission for them. Can you belive this, a CM is openly asking for commission for middlemen. Cong party is not a political party, its middlemen commission party. Maa beta used to do the same business. Defence Dalals, chopper deals, Bofors scam is same middle men commission. Modiji Chocked this money. ��
��Wheat procured in 2020-21: 127.14 Lakh MT
��MSP - Rs 1,925 per 100 kg.
��Commission potential for middlemen at 2.5% of MSP (if whole QTY procured at Mandi) - Rs 612 Crore.
�� Potential commission earned at Rs 46 per 100 Kg - Rs 585 Cr only!
➡️4-graphs which explain Punjab agitation.
��G1 - Share of Wheat production in Bharat.
��G2 - Share of Wheat procurement by GOI
��Punjab produces 17.18% of wheat in Bharat but its share of GOI procurement is more than double at 38.04%
��Same goes for Haryana
�� And now, look at UP��
��G3 - Share of rice production in Bharat.
��G4 - Share of rice procurement by GOI
�� Punjab produces 10.9% of rice in Bharat but its share is 26.8% of total procurement by GOI.
��Look at WB in terms of production share versus procurement.
�� In many states, share of GOI procurement is multiple times higher than share of pan-Bharat production.
��But this is most pronounced in Punjab and Haryana.
�� - In case of Punjab and Haryana, rice procurement over last 5-years is 2.44 and 2.28 times their+ share of production in Bharat.
�� Uttara Khand also has a high share but the underlying quantity of rice produced and bought is very small relative to Punjab or other states.
@@@@
��Studies have recommended that Punjab and Haryana should actually not be growing rice because of its impact on ground-water table.
��BTW, Madhya Pradesh has had a bumper wheat crop this years, and hence, its share in procurement has gone up this year (33.19%)
�� Otherwise, last 4-year average of its share in wheat procurement is only 19.84%.
��Long story short + western Bharat has better procurement infrastructure, it has access to ground-water recharged by canals, and couple that with free electricity, it can produce rice. Which is water intensive & can't be otherwise sustained unlike Eastern Bharat where monsoon permits its growth.
��Without MSP, Punjab and Haryana cannot sustain their rice crop as it is not consumed in-house.
��Similarly, w/o MSP, wheat production will also suffer from same issue.
�� If GOI does not purchase it, where will they sell their produce? This is fear of middlemen.
institutionalised loot..
- of farmers
- of consumers
- of taxpayers
all for the sake of some filthy rich farmers/mandi lobbies of punjab and haryana..this is the story of so called protests.```
THE ABOVE is CITED Just to supplement my REQUEST...
जवाब देंहटाएंOtherwise, poetry is good...
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर।
हटाएंविवशता के अतिरिक्त कुछ नहीं दिखता है जो दुखद है । हृदयस्पर्शी ।
जवाब देंहटाएंदिल से आभार आदरणीय दी।
हटाएंसृजन सार्थक हुआ आपकी प्रतिक्रिया मिली।
आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
एक ऐसे विषय को छुआ है आपने जिस पर चर्चा ही समाधान है ... और ये होनी चाहिए ... पक्ष और विपक्ष हर बात का होगा ... मत विभाजन हर चीज पर है भारत देश में ...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर सृजन सार्थक हुआ।
हटाएंसादर प्रणाम
इस कविता में आपने धारा के विरूद्ध बहने का साहस किया है अनीता जी । ऐसा साहस करना ही बहुत बड़ी बात है ।
जवाब देंहटाएंहृदय से आभारी हूँ सर।
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