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रविवार, जुलाई 26

माटी के लाल


सैनिकों की प्रीत को परिमाण में न तोलना 
वे प्राणरुपी पुष्प देश को हैं सौंपतें।
स्वप्न नहीं देखतीं उनकी कोमल आँखें 
नींद की आहूति जीवन अग्नि में हैं झोंकते।

ऐंठन की शोथ सताती,चेतना गति करती।
ख़तरे के शंख उनके कानों में भी हैं बजते।
फिर भी दहलीज़ की पुकार अनसुनी कर 
दुराशा मिटाने को दर्द भरी घुटन हैं पीते।

वे गिलहरी-से कोटरों से नहीं झाँकतें 
नहीं तलाशते कंबल में संबल शीश पर आसमान लिए।
द्वेष की दुर्गंध से दूर मानवता महकाते 
ऐसे माटी के लाल मनमोही मन में हैं रम जाते।

©अनीता सैनी 'दीप्ति'

मंगलवार, मार्च 31

मानव मन अवसाद न कर


खिल उठेगा आँचल धरा का, 
मानव मन अब अवसाद न कर, 
हुओर प्रेम पुष्प खिलेंगे, 
समय साथ है आशा तू धर। 

 पतझर पात विटप से झड़ते, 
बसँत नवाँकुर खिल आएगा, 
खुशहाली भारत में होगी  
गुलमोहर-सा खिल जाएगा, 
बीतेगा ये पल भी भारी,  
संयम और  संतोष  तू  वर। 

 धरा-नभ का साथ है सुंदर 
 जीवन आधार बताते हैं 
कर्म कारवाँ  साथ चलेगा, 
मिलकर के प्रीत सँजोते हैं,  
पनीली चाहत थामे काल ,  
विवेक मुकुट मस्तिष्क पर धर। 

खिलेंगे किसलय सजा बँधुत्त्व 
मोती नैनों के ढ़ोते हैं, 
 स्नेह मकरंद बन झर जाए,
 अंतरमन को समझाते हैं,  
 विनाश रुप के  काले मेघ,
  धरा से विधाता विपदा हर । 
©अनीता सैनी 

रविवार, मार्च 8

बेसुध धरा पर पड़ी है दिल्ली... नवगीत

कुछ रंग अबीर का प्रीत से,
मानव मानव पर मलते  हैं, 
बेसुध धरा पर पड़ी दिल्ली, 
मिलकर बंधुत्व  उठाते  हैं

सोनजही की बाड़,बाँधकर, 
किसलय क़समों-वादों की ।
नीर बहा दे नयनों  से कुछ, 
बिछुड़ी निर्मल यादों की

बहका मन बेटों  के उसका, 
कहकर फूल थमातें हैं ।
बेसुध धरा पर पड़ी दिल्ली,  
मिलकर बंधुत्व उठाते हैं ।

नाज़ुक दौर दर्द असहनीय, 
मरहम मधु वाणी का दे ।
जली देह अपनों के हाथों, 
कंबल मानवता का दे

अहंकार गरल बोध मन का,
अंतर द्वेष मिटाते हैं ।
बेसुध धरा पर पड़ी दिल्ली, 
मिलकर बंधुत्त्व उठाते हैं।

कुछ रंग अबीर का प्रीत से,
मानव मानव पर मलते  हैं, 
बेसुध धरा पर पड़ी दिल्ली, 
मिलकर बंधुत्व  उठाते  हैं

© अनीता सैनी

शुक्रवार, फ़रवरी 14

पन्ना धाय के आँसू



पन्ना धाय तुम्हारे आँसुओं से भीगे,
 खुरदरे मोटे इतिहास के पन्ने, 
जिनमें सीलन मिलती है आज भी,
कर्तव्यनिष्ठा राष्ट्रप्रेम की


उदय सिंह क़िले के ठीक पीछे,
 झील में झिलमिलाता प्रतिबिम्ब त्याग का,
ओस की बूँदों-सा झरता वात्सल्य भाव,
पवन के झोंको संग फैलाती महक ममता की

ज़िक्र मिलता है ममत्व में सिमटी, 
तुम्हारे भीगे आँचल की मौन कोर का,  
 पुत्र की लोमहर्षक करुण-कथा का,  
  लोकगाथा  तुम्हारे अपूर्व बलिदान की

चित्तौड़ के क़िले की ऊँची सूनी दीवारों में,
गूँजता तुम्हारा कोमल कारुणिक रुदन,
 सिसकियों में बेटे चंदन की बहती पीड़ा,
 दिलाती याद अनूठे स्वामिभक्ति की

उनींदे स्वप्न में सतायी होगी याद,  
तुम्हें बेटे की किलकारी की,  
काटी होगी गहरी काली रात, 
तुमने अपने ही भाव दासत्व की

पराग-सा मधुमय फलता-फूलता,  
खिलखिलाते  महकते  उदयपुर संग,  
धाय माँ के दूध की ऋणी बन इतराती आज भी,    
अजर-अमर अजब दास्ताँ क़ुर्बानी की

©अनीता सैनी 

गुरुवार, जनवरी 23

गणतन्त्र दिवस पर मिट्टी हिंद की सहर्ष बोल उठी



मिट्टी हिंद की सहर्ष जय गणतन्त्र बोल उठी है 
मिटी नहीं कहानी आज़ादी के मतवालों की, 
बन पड़ी फिर ठण्डी रेत पर उनकी कई परछाइयाँ, 
   आज़ादी के लिये जिन्होनें साँसें अपनी गँवायीं थीं
कुछ प्रतिबिम्ब दौड़े पानी की सतह पर आये,
कुछ तैर न पाये तलहटी में समाये,
कुछ यादें ज़ेहन में सोयीं थीं कुछ रोयीं थीं, 
 कुछ रुठी हुई पीड़ा में अपनी खोयीं थीं, 
मिट्टी हिंद की सहर्ष  बोल उठी, 
मिटी नहीं कहानी वे छायाएँ-मिट पायी थीं। 

बँटवारे का दर्द भूलकर,
कुछ लिये हाथों में तिरंगा दौड़ रही थीं, 
अधिराज्य से पूर्ण स्वराज का, 
सुन्दर स्वप्न नम नयनों में सजोये थीं,
नीरव निश्छल तारे टूटे पूत-से,
टूटी कड़ी अन्तहीन दासता के आँचल की थीं,
लिखी लहू से आज़ादी की
 संघर्ष से उपजी वीरों की लिखी कहानी थी, 
मिट्टी हिंद की सहर्ष  बोल उठी, 
मिटी नहीं कहानी वे छायाएँ-मिट पायी थी। 

बहकी हवा फिर बोल रही,
बालू की झील में शाँत-सी एक लहर उठी,
नव निर्माण के नवीन ढेर निर्मितकर,
उत्साह जनमानस के हृदय में घोल रही, 
एकता अखंडता सद्भाव के सूत्र, 
पिरोतीं विकास की अनंत  आशाएँ थीं, 
धरती नभ समंदर से चन्द्रभानु भी कहता है, 
लिख रहा हर भारतवासी, 
ख़ून-पसीने से गणतन्त्र की नई इबारत है, 
मिट्टी हिंद की सहर्ष  बोल उठी है, 
मिटी नहीं कहानी वे छायाएँ-मिट पायी थी। 

©अनीता सैनी  

शुक्रवार, सितंबर 20

ऐसा नहीं वक़्त सज्दे में झुका था




घटाओं के बदले तेवर,  
वे  तोहमत हवाओं पर लगाती थीं, 
दुहरा आसमां  झुका नहीं जज़्बातों से,   
वक़्त ने वक़्त से धोखा किया,वक़्त सज्दे में नहीं था |

गिरोह बना रहे  विश्व पटल पर, 
बादलों को बाँटने का वो दस्तूर  पुराना  था, 
संघर्ष के पड़ाव पर सूख जाती है विचारों की नमी, 
लम्हात को पता था वो भविष्य के दरिया में गहरा उतरा था |

आहट से बेख़बर वो बरबस मुस्कुराता बहुत था, 
कब किस राह से गुज़रेगा साँसों का कारवाँ,वो तारों से पूछता था,  
बेख़बर था वो देख जमघट काफ़िरों का, 
बुन रहा जाल ज़ालिमों के ज़लज़ले से,दोष उसी लम्हे का था |

हाहाकार हसरतों का सुना,बादलों के उसी दयार  में, 
 इंसानों के जंगल में भटके विचारों को हाँक रहा समय था, 
गूंगे-बहरों  की भगदड़ में फ़ाक़े बिताकर मर गया वह, 
ऐसा नहीं सज्दे में झुका था,जाने जलसा कब हुआ था ?

- अनीता सैनी 

मंगलवार, अगस्त 27

मैं फिर लिखूँगी


                                           
क्षितिज पटल पर, 
लिखती रहूँगी, 
प्रतिदिन एक कविता,
धूसर रंगों से सजाती रहूँगी,  
उस पर तुम्हारा नाम।

तुम उसी वक़्त निहारना उसे, 

मुस्कुरा उठेगी वही ढलती शाम, 
और गटक जाना, 
यादों का एक  जाम।

मैं फिर लिखूँगी, 

घड़ी की सेकंड की सुई से, 
हर एक साँस पर, 
एक और कविता का, 
 झंकृत शब्द लिये  तुम्हारे नाम।

मा  जायेगी वह चिर-चेतना में, 
ड़ेल हृदय में  स्वाभिमान, 
पुकारोगे  अनजाने में जब उसका नाम, 
 आँखें   झलक जायेंगीं , 
 देख अश्कों  का लिखा  फ़रमान,  
जहाँ शब्द न बने तुम्हारे, 
 ख़ामोशी सुनायेगी उस पहर का पैग़ाम


आँखों में गुज़ारा है तुमने, 
रात का हर पहर ,
ठुड्डी टिकाये रायफ़ल पर,  
निहारा है खुला आसमान, 
चाँद-सितारों से किया, 
 बखान अपना फ़साना गुमनाम।

कभी ज़मी पर लिखकर मेरा नाम, 

पैर से मिटाते, 
कभी मुट्ठी में छिपाते, 
मंद-मंद मुस्कुराते, 
और सीने से लगा लेते, 
आँखों की नमी, 
रुँधा कंठ सुना देता,   
तुम्हारा अनकहा पयाम।

उसी पल, 

वक़्त की मुट्ठी में थमा देना, 
सपनों से सजा सुनहरा, 
मख़मली झिलमिलाता आसमान।

    @अनीता सैनी 'दीप्ति'

रविवार, जुलाई 28

भारतरत्न डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम



सादगीपूर्ण  जीवन,  
 ज़िंदगी  का  सार  समझाता   है, 
भारत का महान सपूत,
 हमें जीवन की राह  दिखाता  है |

समर्पण की परिभाषा,
 व्यक्तित्व  में  झलकती   है, 
जीवन के हर पहलू में,
 महानता की  महक मिलती है |

इंसान को इंसानियत का पाठ, 
विचारों से भविष्य को सतत प्रवाह मिलता  है,
कृतित्व  से महकाया दुनिया को, 
  जीवन का आचरण बुलंदियों की राह दिखाता  है |

व्यक्तित्व में झलकता नूर,
 जीवन कोहिनूर-सा चमकता है,
इंसान के लिबास में,
 धरा पर आया  फ़रिश्ता,
कर्तव्यनिष्ठा का पाठ उनकी  छवि में झलकता है |

- अनीता सैनी 

मंगलवार, फ़रवरी 26

अदम्य साहस



                                          

सपूत को खोकर 
तिलमिलाया आसमां,
आज ख़ुशी के आँसू बहाए ,
ठंडी  हुई  हृदय की  ज्वाला,
आज   सुकून   से  रोया |


आँख   का  पानी,
दिल  का दर्द  इत्मीनान  से  सोया, 
सेना  का  शौर्य,
 शहीद  का  कारवां,   
ख़ुशी  से  मुस्कुराया |


अदम्य  साहस  देख जवानों  का,
आसमां फिर मिलने आया ,
सौग़ात में बरसायीं  बूंदें, 
तिलक सूर्य  की  किरणों से करवाया  |
                
                               - अनीता सैनी 

रविवार, फ़रवरी 17

बोलता ताबूत



                                  
         अमन  का  पैगाम,
          लहू  से  लिख  दिया,        
         दिए  जो  ज़ख़्म, 
     सीने  में  छुपा   दिया |

       मोहब्बत  का  पैगाम,
पैगंबर  बना   दिया,
    दर्द में डूबा दिल,
एक बार फिर मुस्कुरा दिया |

   शहीद का दर्जा,
चोला  भगवा  का पहना  दिया,
खेल  गए वो  राजनीति,
मुझे ताबूत में  सुला  दिया | 


   घर  में  बैठे  आंतकी,
मुझे  पहरेदार  बना  दिया,
   हाथों   में  थमा   हथियार,
लाचार  बना  दिया  |
      
  दीन  हूँ या  हीन,
कटघरे  में  खड़ा  कर  दिया,
  खौल रहा   था  ख़ून,
मुझे  झेलम में डूबों  दिया |


     -अनीता सैनी 

बुधवार, जनवरी 23

शत-शत नमन



                  
                 
      वतन  पर  मिटने  वाला, 
    भारत  का  सपूत  निराला ,
    हाथों में शंख युद्धघोष के लिये,
 कलेजे  में  धधके  ज्वाला |


  दृढ़प्रतिज्ञ   फ़ौलाद-सा सीना,
  आज़ादी का  करे  आह्वान ,
 "तुम मुझे ख़ून दो मैं तुम्हें  आज़ादी दूँगा"
लबों पर इन्हीं शब्दों का गान |



   निर्भीक  निडर  परमवीर जाँबाज़ योद्धा ,
"जय हिंद" का करता  उद्घोष ,
     युवा  सहृदय   सम्राट,
 आज़ादी  का  करता   जयघोष |

                              - अनीता 

गुरुवार, नवंबर 15

मैं अपने घर का मेहमान

                           
  मुस्कुराता  चेहरा,आँखें  बोल  गयीं  
    वक़्त का मेहमान,तुम्हारा ग़ुलाम  बन गया 

    दहलीज़  का  सुकून,मेरे  नसीब  से खेल गया
   घर  अनजान, सरहद  जान  बन  गयी

   तेरी यादों  का धुआँ ,मेरी  पहचान  बन  गयी  
   तरसती  हैं  निगाहें,  ऐसे  मेहमान  बन  गया 

   समेट ली सभी  हसरतें, दिल  के सभी जल गये
  जिंदगी  ख़ाली  मकान, तन्हाइयाँ  जान  बन  गयी | 

   घर  के  मेहमान, ज़िंदगी  के  मुसाफ़िर बन गये,
 तुम्हारा गुनहगार, देश का  पहरेदार  बन गया |

  -अनीता सैनी